देवघर:
ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि को देवघर के 10वें सरदार पण्डा अजीतानन्द ओझा का निधन हृदय गति रुक जाने से हो गया. जिसके बाद तीर्थपुरोहितों में शोक की लहर दौड़ पड़ी. बताया जा रहा कि सुबह नित्य दिन की तरह स्नान करके पूजा पाठ करने के बाद सरदार पण्डा जप कर रहे थे इसी दरम्यान उनकी तबियत बिगड़ी, आनन-फानन में अस्पताल ले जाया गया, लेकिन सरदार पंडा का निधन हो चूका था.
अपराह्न बेला में मंदिर का पट रहा बंद:
10वें सरदार पण्डा अजीतानन्द ओझा के देहावसान के कारण ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि के अवसर पर मंगलवार को अपराह्न बेला में बाबा वैद्यनाथ मंदिर का पट बंद कर दिया गया। यह देव की परंपरा रही है कि जब किसी सरदार पण्डा (प्रधान पुजारी) का निधन हुआ है उनके सम्मान में कामनालिंग बाबा वैद्यनाथ मंदिर का पट भी आमभक्तों के लिए बंद कर दिया जाता रहा है। उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए पुरोहित समाज की ओर से लिए गए निर्णयानुसार मंगलवार को अपराह्न बेला में बाबा मंदिर का पट बंद कर दिया गया, जो संध्या बेला में शृंगार के समय खुला। 1970 के दशक में नवम सरदार पण्डा सदुपाध्याय भवप्रीतानन्द ओझा के निधन के समय भी इस परंपरा का निर्वाह किया गया था और उसके बाद लगभग 47 वर्षों के बाद पुन: उसे दोहराया गया।
शाही अंदाज़ में हुआ सरदार पण्डा का अंतिम संस्कार:
पौराणिक व्यवस्था व परंपरा के अनुसार एक राजा के समान सरदार पण्डा का अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान के साथ किया गया। बाबा वैद्यनाथ मंदिर प्रांगण में बने खास स्थान की सफाई कराकर वहीं पर सरदार पण्डा के पार्थिव शरीर को रखा गया। बड़े पुत्र गुलाब नन्द ओझा ने परंपरानुसार वहां पर पार्थिव शरीर का स्नान कराया। फिर नया वस्त्र पहनाया गया। कई दशकों के बाद हो रहे इस प्रकार के कर्म को देखने के लिए पूरे बाबा मंदिर प्रांगण में शहरवासियों के साथ श्रद्धालओं की भी भारी भीड़ जुट गयी थी। भीड़ नियंत्रित करने के लिए प्रशासनिक स्तर पर उक्त स्थल की बैरिकेडिंग करा दी गयी थी। वहीं प्रशासनिक व पुलिस पदाधिकारियों को भी लगा दिया गया था।
मंदिर परिक्रमा के बाद निकाली गयी शव-यात्रा:
बाबा मंदिर प्रांगण में विभिन्न धार्मिक कर्म करने के बाद परंपरानुसार सरदार पण्डा के पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए ले जाने के पूर्व बाबा वैद्यनाथ मंदिर की परिक्रमा करायी गयी। उसके बाद ढोल-ढाक, अबीर-गुलाल के साथ बाबा मंदिर सिंह द्वार से शिवगंगा लेन होते हुए मानसरोवर तट अवस्थित चिता तक ले जाया गया। बताते चलें कि सरदार पण्डा का अंतिम संस्कार महाश्मशान में नहीं कराए जाने की परंपरा रही है। पुरानी व्यवस्था के अनुसार उनका अंतिम संस्कार मानसरोवर के दक्षिणी तट अवस्थित पीपल वृक्ष के नीचे किया गया। आठ मन चन्दन व बेल की लकड़ी से बनाए गए चिता पर बड़े पुत्र गुलाब नन्द ओझा ने सरदार पण्डा को मुखाग्नि दी। मौके पर उनके अन्य तीन पुत्र विजय नन्द झा, सोना नन्द झा और सच्चिदानन्द झा उर्फ बाबा झा भी मौजूद रहे। इस पल का गवाह बनने के लिए बड़ी संख्या में शहरवासी वहां मौजूद रहे।
बड़ी संख्या में लोग थे मौजूद:
सूबे के श्रम, नियोजन एवं प्रशिक्षण मंत्री राज पलिवार, पूर्व मंत्री के एन झा, देवघर विधायक नारायण दास, जरमुण्डी विधायक बादल पत्रलेख डीसी राहुल कुमार सिन्हा, एसपी नरेन्द्र कुमार सिंह, एसडीपीओ दीपक कुमार पाण्डेय, अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री विनोद दत्त द्वारी, पण्डा धर्मरक्षिणी सभा के अध्यक्ष प्रो. डॉ. सुरेश भारद्वाज, महामंत्री कार्तिक नाथ ठाकुर, उपाध्यक्ष अरुणानन्द झा, बाबा मंदिर सहायक प्रभारी डॉ. सुनील तिवारी, आनंद तिवारी, दीपक मालवीय, प्रबंधक रमेश परिहस्त सहित बाबा मंदिर के सभी पदाधिकारी व कर्मी मौजूद रहे।
अब गुलाब नन्द झा होंगे देवघर के नये सरदार पंडा:
सरदार पण्डा अजीतानन्द ओझा के देहावसान के साथ ही नये सरदार पण्डा की भी घोषणा बाबा मंदिर प्रांगण में कर दी गयी। पुरोहित समाज के गणमान्य लोगों की उपस्थिति में नियमानुसार सरदार पण्डा अजीतानन्द ओझा के बड़े सुपुत्र गुलाब नन्द ओझा के नाम की घोषणा नये व ग्यारहवें सरदार पण्डा के रूप में कर दी गयी। सरदार पण्डा के श्राद्ध कर्म की अवधि तेरह दिनों की होगी। इस अवधि में सभी श्राद्ध कर्म विधिवत उनके बड़े सुपुत्र गुलाब नन्द ओझा के हाथों ही संपन्न होना है। पिता के श्राद्ध कर्म के बाद विधिवत रूप से पुरोहित से एक तिथि निर्धारित कराकर नये सरदार पण्डा को गद्दी पर विराजमान कराया जाएगा।
मलमास मेला की समाप्ति के बाद हो सकती है ताजपोशी:
जानकारों ने बताया कि वर्तमान समय में मलमास मेला भी चल रहा है। मलमास मेला में अपने यहां किसी भी प्रकार के शुभ कार्यों को नहीं किए जाने की परंपरा रही है। ऐसे में पहले दशम् सरदार पण्डा का श्राद्ध कर्म पूर्ण होगा, उसके बाद परिवारजनों के साथ बैठक कर इससे संबंधित सामूहिक निर्णय लिया जाएगा। उम्मीद इस बात की रहेगी कि मलमास मेला समाप्ति के बाद एक श्रेष्ठ दिन का चयन कर परंपरा व व्यवस्था के अनुसार ग्यारहवें सरदार पण्डा के रूप में गुलाब नन्द ओझा को गद्दी पर बैठाया जाएगा। बता दें कि सरदार पण्डा को गद्दी पर बैठाए जाने की पूरी प्रक्रिया राज्याभिषेक के समान होती है। जिस प्रकार किसी राजा को गद्दी पर बैठाने के समय विविध प्रकार के कार्य कराए जाते हैं उसी प्रकार सरदार पण्डा को भी गद्दी पर बैठाये जाने की परंपरा रही है।
महज साढ़े दस माह तक ही रहे गद्दी पर:
सरदार पण्डा अजीतानन्द ओझा ने यूं तो सरदार पण्डा की कुर्सी के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी। न्यायालय ने उनका पक्ष मजबूत मानते हुए 46 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद निर्णय भी उनके पक्ष में सुनाया। 7 दिसंबर 2016 को देवघर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश चतुर्थ लोलार्क दुबे ने अजीतानन्द ओझा के पक्ष में निर्णय सुनाया था। न्यायालय के आदेश के बाद भी सरदार पण्डा की गद्दी पर सत्तासीन होने के लिए अजीतानन्द ओझा को एक बार फिर सरकार के आदेश का इंतजार महीनों करना पड़ा। 6 जुलाई 2017 को उन्हें सरदार पण्डा की गद्दी पर समारोहपूर्वक बैठाया गया। लंबी लड़ाई के बाद मिली कुर्सी पर बैठने के बाद भी उनमें कोई बदलाव नहीं आया। प्रशासन की ओर से धीरे-धीरे उन्हें उपलब्ध करायी जा रही सुविधाओं को उन्होंने बगैर किसी विवाद के स्वीकार किया। इन चीजों के बीच वह महज साढ़े दस माह तक ही कुर्सी पर रह सके।
शानदार रहा कार्यकाल:
सरदार पण्डा के रूप में अजीतानन्द ओझा का कार्यकाल भी काफी शानदार रहा। उन्होंने सबों को एक समान भाव से देखने का काम किया। विश्वप्रसिद्ध श्रावणी मेला के साथ भादो सहित वर्तमान का मलमास मेला भी उनके समय में आया लेकिन किसी भी मेले में किसी भी प्रकार के ऐसे हालात नहीं बने जिससे यह कहा जा सके कि कहीं किसी प्रकार के विवाद की स्थिति बनी हो। अंतर्मुखी सरदार पण्डा ने सब कुछ नियम के अनुसार समय-समय पर कर सबों के दिलों में अपनी अलग छाप छोड़ी।