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होममध्य प्रदेशइंदौर की 'गेर' में नजर नहीं आता राजा और रंक का फर्क

इंदौर की ‘गेर’ में नजर नहीं आता राजा और रंक का फर्क

मालवा और निमांड के होलिकोत्सव की बात चले तो वह इंदौर की 'गेर' के बिना अधूरी है। यह ऐसा आयोजन है जो इस इलाके को उत्साह और मस्ती के रंग से सराबोर कर देता है।

By: संदीप पौराणिक

Indore: मालवा और निमांड के होलिकोत्सव की बात चले तो वह इंदौर की ‘गेर’ के बिना अधूरी है। यह ऐसा आयोजन है जो इस इलाके को उत्साह और मस्ती के रंग से सराबोर कर देता है। साथ ही सामाजिक समरसता का संदेश देने के साथ राजा और रंक, गरीब और अमीर का फर्क कहीं नजर नहीं आता।

इंदौर में बीते दो साल का होलिकोत्सव गुप-चुप गुजर गया क्योंकि कोरोना महामारी के चलते ‘गेर’ नहीं निकली थी। यही कारण रहा कि यहां को लोगों को ‘गेर’ के बगैर लगा ही नहीं जैसे होली मना ली हो। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस बार रंगपंचमी के मौके पर ‘गेर’ निकालने के ऐलान के साथ लोगों का उत्साह हिलौरें मारने लगा है। तैयारियों का दौर शुरू हो गया है। हो भी क्यों न, क्योंकि यह ऐसा आयोजन है जो दूरियों को खत्म कर देता है, उंच-नीच के भेद को मिटा देता है और कहीं भी ‘गैर’ का भाव नजर नहीं आता।

दो साल बाद गेर निकाले जाने को लेकर हर कोई उत्साहित है,क्योंकि दो साल से उसकी होली बेरंग रही और वह इस बार बीते दो साल की कस भी पूरी कर लेना चाहता है। संगम कॉर्नर रंगपंचमी महोत्सव समिति के अध्यक्ष कमलेश खंडेलवाल कहते है,’हमारा संगठन पिछले 68 साल से रंगपंचमी पर गेर निकाल रहा है। लेकिन इस बार गेर का आनंद कुछ अलग होगा क्योंकि यह दो साल के अंतराल के बाद निकलेगी।’

वहीं प्रशासन भी इस आयोजन की पूरी तैयारियां में लगा हुआ है, रास्ता तय किया जा रहा है। यह आयोजन बगैर किसी दिक्कत के हो जाए इस पर प्रशासन का खास जोर हैं । प्रशासनिक अधिकारियों और राजनेताओं के दल उस रुट का भी जायजा ले रहे है, जहां से यह गेर निकलेंगी।

इंदौर की गेर का इतिहास काफी पुराना

कहा जाता है कि इंदौर की गेर का इतिहास काफी पुराना है। इस परंपरा की शुरूआत होलकर वंश के दौर में हुई। तब इस राजवंश के लोग अपनी प्रजा के साथ होली खेलने के लिए रंगपंचमी के मौके पर सड़कों पर निकलते थे। उस समय बैलगाड़ियों में फूलों और हर्बल सामग्री के रंग और गुलाल होता था , जो भी उन्हें रास्ते में मिलता था, उसको रंग लगा देते थे। इतना ही नहीं पिचकारियों में रंग भर के लोगों के ऊपर फेकते थे। कुल मिलाकर होली के इस पर्व पर कोई बड़ा और कोई छोटा नहीं होता था। वही अब भी है।

वक्त बदलने के साथ गेर में कुछ बदलाव आए है। वर्तमान दौर में गेर में बड़े वाहनों पर रंग और गुलाल होता है, साथ ही पानी के टेंकर भी चलते है, बड़ी-बड़ी मोटर पंपों के जरिए रंग और गुलाल को आसमान की तरफ उछाला जाता है। आलम यह होता है कि हर सड़क रंगीन हो जाती है और मोटर पंपों के जरिए उछाले जाने वाले रंग और गुलाल से कई मंजिल वाले मकानों की छत पर खड़े लोग भी नहीं बच पाते। हर तरफ होता है तो सिर्फ रंग और गुलाल।

गेर को ‘फाग यात्रा’ के रूप में भी जाना जाता है। यह गेर रंगपंचमी के मौके पर अलग-अलग हिस्सों से निकलकर राजबाड़ा वह स्थान जहां होलकरशासकों के महल है, उसके सामने पहुंचती है और यह स्थान रंग-गुलाल की बौछारों में बदल जाता है। गीत और संगीत की धुनों पर थिरकते हुरियारे पूरे माहौल को रंगीन बना देते है, यह नजारा मनभावन और सामाजिक समरसता का संदेश देता नजर आता है। (IANS)

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