Ranchi: झारखंड में भाषा पर विवाद (Controversy over language in Jharkhand) बढ़ गया है। राज्य में वर्षों से रहने वाले भोजपुरी और मगही (Bhojpuri and Magahi) भाषी लोगों ने सरकार के फैसले का विरोध करना शुरू कर दिया है। इतना ही नहीं कई संगठन भी सरकार के निर्णय का विरोध कर रहे हैं। जगह-जगह हेमंत सोरेन के पुतला दहन (Hemant Soren’s effigy burnt) का सिलसिला शुरू हो गया है।
भोजपुरी और मगही भाषी वोटरों का वोट पाने वाले राजनीतिक दल भी गोलबंद होकर सरकार को घेरने में जुट गए हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के अलावा हेमंत सोरेन की सरकार में भागीदार राजद ने भी अपने ही सरकार के फैसले की आलोचना की है। राजद सुप्रीमो लालू यादव (RJD supremo Lalu Yadav) तो खुलकर कह चुके हैं कि भोजपुरी समाज किसी से डरता नहीं है।
गौरतलब है कि हेमंत सोरेन सरकार ने धनबाद और बोकारो जिले की स्थानीय भाषाई सूची से भोजपुरी और मगही को हटा दिया है। जिला स्तरीय नियुक्तियों में क्षेत्रीय भाषा के तौर पर होने वाली परीक्षा में धनबाद और बोकारो में भोजपुरी और मगही को मान्यता दी गई थी। झामुमो और आजसू पार्टी ने इसका पुरजोर विरोध किया। कांग्रेस ने भी इस मसले पर हेमंत सोरेन सरकार को फैसला बदलने को कहा। आखिरकार झारखंड सरकार ने धनबाद और बोकारो में भोजपुरी और मगही को हटा दिया गया।
झारखंड राजद की बैठक में गरमाएगा मुद्दा
राजधानी रांची में रविवार को राजद की बैठक बुलाई गई है। इसमें भोजपुरी और मगही का यह मुद्दा उठने की पुरजोर संभावना है। राजद का रुख लालू यादव के बयान के विपरीत नहीं होगा। संगठन लालू यादव के बयान के अनुरूप ही हेमंत सोरेन सरकार को घेर सकता है। इस बैठक में राजद के दिग्गज नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी और श्याम रजक के अलावा झारखंड सरकार में पार्टी के मंत्री सत्यानंद भोक्ता, पूर्व केंद्रीय मंत्री जय प्रकाश नारायण यादव, भोला यादव, पार्टी के पूर्व विधायक, सांसद और झारखंड के नेता भाग लेंगे। भोजपुरी और मगही पर सरकार के स्टैंड से राजद नाराज चल रहा है।
झारखंड में थमने वाला नहीं है भाषा विवाद
जानकारों का कहना है कि झारखंड में जारी भाषा का यह विवाद थमने वाला नहीं है। आने वाले दिनों में यह और भड़क सकता है। वजह यह कि अगर भोजपुरी और मगही के पक्ष में भाजपा, कांग्रेस और राजद जैसे पार्टियां खड़ी नहीं हुईं तो इस भाषा से संबंधित वोटर ही इन पार्टियों का विरोध शुरू कर देंगे। यह ऐसे वोटर हैं जो इन्हीं तीन पार्टियों में सबसे ज्यादा आस्था रखते हैं। झारखंड के शहरी इलाकों में इनकी अच्छी आबादी है। चुनाव को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। भाजपा के साथ एक दिक्कत यह भी आएगी कि अगर उसने खुलकर भोजपुरी का साथ दिया तो आदिवासी वोटर उससे नाराज हो जाएंगे। यही हाल कांग्रेस का भी है। राजद की क्षमता झारखंड में सीमित है। बिहार से सटे कुछ इलाकों में ही उसका प्रभाव रहा है। (HS)