प्रो. डाॅ. नागेश्वर शर्मा
एक फरबरी को लोक सभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा बजट प्रस्तुत किया जायेगा। यह कोविड काल के दौरान दूसरा केन्द्रीय बजट होगा। बजट केन्द्रीय सरकार की आय-व्यय का ब्यौरा होता है, जिसे देखने से यह पता चलता है कि सरकार अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में क्या करना चाहती है ।बजट ही अर्थव्यवस्था की दशा -दिशा प्रभावित करती है। यही वजह है कि बड़े औद्धोगिक घरानो से लेकर छोटे व्यापारी -कारोवारी ,नौकरी पेशा वाले एवं आम जनता तक बजट कैसा हो, इसे लेकर उत्सुक एवं सचेत रहते हैं।
विगत दो वर्षों से भारतीय अर्थव्यवस्था भी कोविड-19 के बिभिन्न म्यूटेसंस की मार झेल रहा है। इसकी मार से उत्पन्न गहरी घाव अभी तक बनी हुई है,भर नहीं पाई हैं। ऐसे में यह सवाल उठना कि बजट कैसा हो, लोगों की बजट से क्या अपेक्षाएं हैं,पर प्रकाश डालना सामयिक एवं मेरी राय में उचित है।
फिलहाल भारतीय अर्थव्यवस्था कई प्रकार की समष्टिगत आर्थिक समस्याओं एवं अनिश्चिताओं से जूझ रही है।ऐसे में यूनियन बजट से उम्मीद की जाती है कि आर्थिक विकास की सततता को बनाए रखने के लिए एक समझौतापरक राजकोषीय नीति अपनाई जानी चाहिए। व्यापक आर्थिक अनिश्चिताएं( Macroeconomic uncertainties ) इस समय जोरों पर है। अतःसरकार को आर्थिक विकास की सततता को समर्थन देने हेतु बजट में एक समंजनशील राजकोषीय नीति (accomodative fiscal stance ) अपनाने की जरूरत है। एक समष्टि अनिश्चिता की उत्पत्ती अमेरिकी केन्द्रीय बैंक फेडरल रिजर्व एवं taper tantrum द्वारा सूद की दर में वृद्धि से हुई है। फलस्वरूप रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया पर सूद की दर में वृद्धि को लेकर दबाव है। ऐसा कैपिटल बाजार से पूंजी के वहिर्गमन (outflows) को रोकने के लिए आवश्यक है। इस अनिश्चितता को बजट में deal करने की जरूरत है।
स्फितिक दबाव दूसरा मैक्रो ईकोनोमिक प्रोबलेम है। थोक मूल्य सूककांक रिकार्ड उच्च स्तर पर है। व्यापर और उद्योग मंत्रालय द्वारा दिए गये ऑकड़े के अनुसार यह नवम्बर 2021 में 14.32% था,जो थोड़ा घट कर दिसम्बर 2021 मे 13. 56%रह गया है। खुदरा मूल्य सूचकांक(उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) ,जो सरकारी रिपोर्ट के अनुसार आदर्श सीमा से थोड़ा उपर है ,आम उपभोक्ताओं लिए एक गंभीर समस्या बनी हुई है।यह अभी 5.03% पर है।लेकिन दलहन एवं तेलहन उत्पादों की कीमत ने तो लोगों को इसके उपभोग में कटौती के लिए मजबूर कर दिया है।
अपेक्षा है कि बजट स्फितिक दबाव को घटाने वाला होगा। तीसरी मैक्रो ईकोनोमिक समस्या विशाल non- performing assets (NPA) की है। इससे बैंक के सामने तरलता की समस्या है। आशा है कि बजट इस समस्या के समाधान वाला होगा। इसके अलावे fiscal deficit पर अंकुश , सार्वजनिक विनियोग-खासकर इन्फ्रास्टकचर विनियोग , जो ग्रोथ ड्राइवर माना जाता है ,पर आगामी बजट में फोकस होना चाहिए।
उम्मीद है कि pandemic के मद्दे नजर स्वास्थ पर खर्च , जो अभी जी डी पी का 0.4% है,में वृद्धि की संभावना बनती है। बेरोजगारी ,करोड़ों भारतीय युवकों की समस्या है ,को घटाने के लिए job guarantee prgramme को मजबूत करने की बजटीय अपेक्षा है। इन सारी अपेक्षाओं एवं विद्यमान मैक्रो आर्थिक अनिश्चिताओं का निदान accommodative fiscal policy stance मे ही निहित दिखता है।
(लेखक भारतीय आर्थिक परिषद के संयुक्त सचिव है.)