
रांची।
झारखण्ड में जब कोरोना खत्म नहीं हुआ है और प्रशासन के द्वारा स्कूल खोलने के निर्णय पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' जी की कविता याद आ रही है- जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है।
खतरा अभी बना हुआ है। कुछ दिन पहले ही IIT-Madras में कोरोना महामारी का कहर देखने को मिला है। यहां कैंपस के अंदर 71 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए जिसमे 66 स्टूडेंट थे। झारखंड से कोरोना खत्म नहीं हुआ है ऐसे में स्कूल खोलने का निर्णय मेरे हिसाब बिलकुल सही नहीं है। जहाँ शादी विवाह में लोगों के आने को सिमित रखा गया है वही स्कूल खोलने की बात समझ में नहीं आ रही है। सरकार को काफी सजग रहने की जरुरत है। सभी लोग आपने फायदे के बारे में सोच रहे हैं। बच्चों, शिक्षकों और अभिभावको के बारे में कोई नहीं। दवाई के आने तक रूक जाने में कोई हर्ज़ नहीं था। अभी भी रांची में 90 से ऊपर कोरोना के मरीज मिल रहे हैं। बहुत से स्कूल के पास अपना बस नहीं है। इस स्कूल के बच्चे और शिक्षक पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करेंगे जो खतरे से खाली नहीं होगा। इस महामारी को वो अपने घर ले जायेंगे। महिला शिक्षकों बारे में कोई नहीं सोच रहा है। पुरुष शिक्षक तो अपने निजी वाहन से स्कूल चले जायेंगे लेकिन महिला शिक्षक कैसे जाएँगी ? बच्चे दिन भर अगर मास्क लगाएंगे तो उनके शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा भी बढ़ेगी और दूसरी लंग्स की बीमारियां भी बढ़ेंगी।
USA से मेरे एक मित्र ने एक माँ का वीडियो भेजा जिसमे उस माँ ने अपने बच्चे के बारे में बताया की दिन भर मास्क पहनने की वजह से स्कूल में बेहोश हो गया। बच्चे हो सकता है की एक दूसरे का मास्क बदल के पहने। अगर ऐसा होता है तो ये और भी खतरनाक होगा। अगर बच्चे दिन भर हाथ को सैनिटाइजर से साफ़ करेंगे (जो नहीं लगता है हो पायेगा) तो चर्म रोग अलग से होगा। हर बच्चे पर नज़र रखना भी मुश्किल है। इसमें वैसे भी बच्चे होंगे जिनके घर में कोरोना हुआ हो और ये बच्चे उस बीमारी के वाहक हो तो क्या होगा ? अगर स्कूल से किसी बच्चे या शिक्षक को कोरोना होता है तो इसकी जिम्मेवारी कौन लेगा? हर चौक चौराहे पे लोगों को जागरूक किया जा रहा है की मास्क लगाएं , भीड़ से बचें तो फिर स्कूल खोलने का औचित्य नहीं समझ में आ रहा है।
बहुत सारे लोगों का ये मानना है की स्कूल अभी नहीं खुलना चाहिए। वैसे स्कूल प्रशासन का ये कहना है की वो पूरा नियम का पालन करेंगे लेकिन कब तक? थोड़ी से बेवकूफी सब बिगाड़ के रख देगी। इस बीमारी का अभी तक कोई दवाई नहीं है और इंजेक्शन भी जो आया है उसका अभी ट्रायल ही हो रहा है।
क्या हमारा राज्य इस महामारी के दुबारा हमले के लिए तैयार है ?
भगवान न करे ये महामारी फिर से सर उठाये। ये मेरे अपने विचार हैं जो मैंने अपने अनुभव के हिसाब से लिखा। बाकि सरकार और समाज की मर्जी।