देवघर।
कोविड-19 की वजह से इस साल कांवर यात्रा पर विराम लगा है। ऐसा सावन पहली दफा आया है जब शिव भक्तों के बाबा दरबार आने पर पाबंदी लगी हो। सुल्तानगंज से बाबाधाम तक 105 किलोमीटर के दायरे में हर साल जहाँ बोलबम के नारे गुंजयमान होते थे, आज वहां सन्नाटा पसरा है। और इस सन्नाटे के बीच मायूस हैं 105 किमी अंतर्गत आने वाले तमाम व्यवसायी जो सिर्फ दो माह अपनी-अपनी दुकान लगा, साल भर के लिए घर चलाने की राशि इकट्ठा कर लेते थे।
कुछ ऐसा है नजारा
सुल्तानगंज के अजगैबीनाथ घाट पर उत्तरवाहिनी बहने वाली शिव की प्रिय गंगा इस साल बिल्कुल शांत है। असंख्य भक्तों के कांधे पर सवार होकर देवघर जाने वाली गंगा की राह में इस वर्ष कोरोना ने रोड़ा अटका दिया है। शांत गंगा के आसपास प्रशासनिक अधिकारियों की नजर रहती है। क्योंकि, बिहार सरकार का सख्त आदेश है कि घाट पर एक भी कांवरिया नहीं आएं।
बैद्यनाथधाम मंदिर का पट इस वर्ष कांवरियों के लिए बंद है। इसे ध्यान में रखकर बिहार सरकार ने भी लॉकडाउन का निर्णय लिया है। अजगैबीनाथ के मंदिर में भी श्रद्धालुओं के प्रवेश पर पूरी तरह से रोक है। मंदिर के महंत प्रेमानंद गिरि कहते हैं कि लॉकडाउन का पालन सबको करना है। इसलिए सरकार का निर्णय सर्वोपरि है। सुल्तानगंज भागलपुर जिले में पड़ता है। यहां से निकलने के बाद असरगंज से संग्रामपुर तक मुंगेर जिले का दायरा है। इसके आगे बांका और फिर सबसे अंत में झारखंड सीमा पर देवघर। लेकिन, भरी दोपहर में भी असरगंज से संग्रामपुर ,हरपुर, रामपुर, बेलहर और कटोरिया तक मुख्य पथ पर कोई खास चहल-पहल नहीं नजर आती है। और मुख्य पथ के समानांतर ही पैदल कांवरिया पथ पर नजर आता है बिल्कुल सन्नाटा।
सदियों पुरानी अद्भूत और अविस्मरणीय कांवर यात्रा पर पाबंदी लगा दी गयी है। ये पाबंदी भले ही मानव जीवन की सुरक्षा के लिए हो लेकिन इस वजह से सुल्तानगंज से देवघर के बीच 105 किलोमीटर कांवरिया पथ पर सिर्फ सन्नाटा ही है। 105 किलोमीटर की कांवर यात्रा में देश ही नहीं विदेशों के कई हिस्सों से आने वाले शिवभक्तों व कर सेवकों का सैलाब यहाँ दिन-रात एक जैसा ही रहता है। लेकिन इस साल सड़कों पर सन्नाटा पसरा है और चेहरे पर मायूसी। न घुंघरूओं की आवाज न बोलबम का कोई उच्चारण। न कोई नये शिविर, न तंबू, और न ही कोई टेंट। न ही धर्मशालाओं में चहल-पहल। बारीक़ बालू से मखमली अहसास कराने वाला कांवरिया पथ भी इस साल बेहाल है, जहाँ कोई पैदल चले तो तुरंत जख्मी हो जाए। भूल-भूलैया, सुईया और जिलेबिया सडक से गुजरना पैदल कांविरयों के लिए यादगार पल होता है। लेकिन इस बार यहाँ शून्य जैसी स्थिति है।
सुल्तानगंज से देवघर तक मुख्य सड़क व कांवरिया पथ के किनारे छोटे से लेकर बड़े दुकान लगाने वाले व्यवसायी मायूस हैं. इनका कहना है कि कोरोना ने इस बार सबकुछ चौपट कर दिया। कोरोना सबको ले डूबा। हर साल सावन में अच्छी कमाई हो जाती थी। लेकिन, इस बार तो खाने को भी लाले पड़े हैं। वहीं, इनका ये भी कहना है कि मेला से ज्यादा सबको जिंदा बचना ज्यादा जरूरी है।
बीते वर्ष श्रावणी मेला में 30 लाख कांवरिया देवघर पहुंचे थे। अगर, आर्थिक रूप से देखा जाये तो श्रावणी मेले का अर्थशास्त्र यह कहता है कि अगर एक कांवरिया तीन-चार दिनों की पैदल यात्रा में औसतन 500-800 रुपये भी खर्च करता है तो एक महीने में तकरीबन दो हजार करोड़ से भी अधिक का कारोबार तय है। लिहाज़ा, 105 किलोमीटर में फैली वीरानगी की एक बड़ी त्रासदी यह भी है।
इस साल बिहार और झारखंड की सीमा-दर्दमारा और पैदल पथ दुम्मा पर पुलिस की जबदरस्त तैनातगी है। बिहार से आने वाले गाड़ियों को यहाँ रोका रहा है. इक्का-दुक्का कांवरिया अगर आ गये तो उन्हें जानकारी दी जा रही कि इस साल वो बाबा का दर्शन नहीं कर पाएंगे, लिहाज़ा, जहाँ पहुंचते ही कांवरियों की थकान मिट जाती थी, ये सोच कर कि अब बस बैद्यनाथ धाम की दूरी मात्र 10 किलोमीटर है और वो जल्द बाबा का दर्शन कर लेंगे. वहां से वो मायूस लौट जाते हैं।
यानि, सुल्तानगंज से देवघर तक के सफर में जहाँ दिन के उजाले और रात के अँधेरे का फर्क खत्म हो जाता था, वहां, इस साल भरी दोपहर भी पैर छलनी कर रही और रात के अँधेरे में भी पत्थर ज़ख्म दे रहे। बाबा की नगरी पहुंचते ही जहाँ हर-हर महादेव की गूंज और बोल बम के नारे गुंजयमान होते थे , वहां इस वर्ष एक आवाज सुनाई देती है- इस बार मन के घर को देवघर बनाएं। घर से बाहर निकलने के बजाए घर में ही शिव की आराधना कर सावन मनाएं....।
सुल्तानगंज से देवघर तक पसरा ये सन्नाटा वाक़ई बेहद परेशान करने वाला है।