आज गुरुवार, 24 जून 2021 को हम कबीर जयंती मना रहे हैं। कारण आज जेठ की पूर्णिमा है। प्रतिवर्ष इस दिन कबीर जयंती मनाने की परंपरा है। कबीर का भारतीय दर्शन, हिंदी साहित्य, भारतीय भक्ति परम्परा और अध्यात्म के क्षेत्र में बड़ा योगदान है। यह सन्त कबीर के नाम से जाने जाते हैं। कवि कबीर के नाम से जाने जाते हैं। विद्रोही कबीर के नाम से भी जाने जाते हैं।
इनसे पहले भी अनेक विद्रोही सन्त हुए। पर अपनी सरल भाषा के कारण इन्होंने प्रथम विद्रोही संत का दर्जा प्राप्त किया। अंधविश्वास, निरर्थक कर्मकांड और अंधश्रद्धा के प्रति इनके विद्रोही तेवर रहे।
मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा ।।
आसन मारि मंदिर में बैठे,
ब्रम्ह-छाँड़ि पूजन लगे पथरा ।।
कनवा फड़ाय जटवा बढ़ौले,
दाढ़ी बाढ़ाय जोगी होई गेलें बकरा ।।
जंगल जाये जोगी धुनिया रमौले,
काम जराए जोगी होए गैले हिजड़ा ।।
मथवा मुड़ाय जोगी कपड़ो रंगौले,
गीता बाँच के होय गैले लबरा ।।
कहहिं कबीर सुनो भाई साधो,
जम दरवजवा बाँधल जैबे पकड़ा ।।
सामान्यतः स्वीकार्य है कि संवत 1455 की इस पूर्णिमा को उनका जन्म हुआ था। जिस समय कबीर का जन्म हुआ भारतीय समाज में जात-पात, छुआछूत, धार्मिक पाखंड, अंधश्रद्धा से भरे कर्मकांड, मौलवी, मुल्ला तथा पंडित-पुरोहितों का ढोंग और सांप्रदायिक उन्माद चरम पर था। जनता धर्म के नाम पर बंटी हुई थी, भ्रमित थी।
कबीर का विद्रोही मन इन पाखंडों के खिलाफ शब्दों में उतरने लगा।
वह हर पाखंड से लोगों को सचेत करने लगे। उन्होंने कहा
‘वो ही मोहम्मद,
वो ही महादेव,
ब्रह्मा आदम कहिए,
को हिन्दू, को तुरूक कहाए,
एक जिमि पर रहिए।’
साधु को परिभाषित किया
साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाहीं ।
धन का भूखा जो फिरै सो तो साधु नाहीं ।
कबीर ने लोक भाषा में लिखा और आमजन के ह्रदय तक पहुंच गए। स्कूली शिक्षा नहीं होते हुए भी उन्होंने साहित्य को भक्ति रस से भर दिया।
भक्ति में गुरु के महत्त्व को प्रमुखता से स्वीकारा।
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ॥
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।।
स्वाध्याय पर बल देते हुए कहा
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय।।
कबीर के शब्द आज भी उतने ही सार्थक हैं, जितने यह अपने रचना काल में थे। आज भी बाजार में खड़े है और भक्ति में लीन कह रहे हैं….
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।
आएं, हम भी कबीर बन जाएं।
(लेखिका: डॉ. रीता सिंह, न्यासयोग ग्रैंड मास्टर सह विभागाध्यक्ष, बी.एड विभाग, ए. एन. कॉलेज, पटना)