देवघर: कोरोना पुरे देश में कहर बरपा रहा है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि देश में कोरोना से बिगड़े हालात के बाद बदइंतज़ामी ने हज़ारों जान ले ली है। देवघर में भी यही आलम है। तभी तो यहां के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में एक अदद वेंटिलेटर तक को चालू नहीं किया जा सका है।
बुधवार को देवघर डीसी ने जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए सम्बंधित अधिकारीयों को निदेश दिया और कहा कि अगर कमी हुई तो कार्रवाई तय है। बिल्कुल, होना भी चाहिए। इतना ही नहीं डीसी ने कोविड केयर सेंटर में वेंटिलेटर व्यवस्थाओं को सुनिश्चित करने के अलावा लैब टेक्नीशियन, वेंटिलेटर टेक्नीशियन एवं आवश्यक एचआर की प्रतिनियुक्ति का निर्देश भी संबंधित अधिकारियों को दिया। लेकिन, सवाल ये है कि व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने में इतनी देर क्यों?
कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत देश में मार्च अंत से हो गयी थी। लोगों को दूसरी लहर में कोरोना सक्रमण के चलते सांस लेने में दिक्क्तों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे मई माह के शुरुआत तक भी देवघर जिले के सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर सिर्फ इसलिए चालू नहीं हो सके क्योंकि यहां टेक्नीशियन नहीं हैं, ये दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। जबकि जिले को काफी पहले 18 वेंटिलेटर केंद्र व राज्य सरकार द्वारा सरकारी अस्पतालों के लिए उपलब्ध करा दिए गए थे। जिसमें सिर्फ दो वेंटिलेटर ही चालू कराये गए हैं। 18 में 16 वेंटिलेटर अब भी धुल फांक रहे हैं, यानि हर दिन 16 वैसी ज़िंदगियाँ जो प्राइवेट अस्पतालों का रुख न करने पर बेबस है, उसकी सांसों से कोरोना नहीं यहां का लाचार सिस्टम खेल रहा है।
स्वास्थ्य विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक सदर अस्पताल और अनुमंडल अस्पताल में पहले से वेंटिलेटर की सुविधा थी। इसके बाद कोरोना के कहर को देखते हुए विभाग की ओर से सदर अस्पताल को 4 , अनुमंडल अस्पताल को 2, कोविड अस्पताल को 6 और सभी CHC को एक-एक (6) वेंटिलेटर उपलब्ध कराये गए। लेकिन इनमें सिर्फ कोविड अस्पताल में दो वेंटिलेटर चालू हो पाए बाकि सारे शोभा की वस्तु बन अबतक पड़े हैं।
बंद पड़े वेंटिलेटर की स्तिथि पर जिले के प्रभारी सिविल सर्जन डॉ. युगल किशोर चौधरी कहते हैं कि जिला में ट्रेड टेक्नीशिनियन नहीं है, विभाग से टेक्नीशियन की मांग की गयी है। विभाग की ओर से सात एएनएम की बहाली की गयी है। टेक्नीशियन को देने की बात कही जा रही है। फिलहाल, दो वेंटिलेटर माँ ललिता हॉस्पिटल में चालू है।
अब हालात का अंदाजा आप लगा सकते हैं। हर दिन न जाने कितनी साँसे टूट रही, कितने गरीब सिर्फ इसलिए काल के गाल में समा जा रहे क्योंकि उनके पास न पैसा है और न ही साँसों को कुछ वक़्त के लिए सपोर्ट करने की सरकारी व्यवस्था। आखिर, कौन लेगा इन अव्यवस्थाओं की जिम्मेदारी? सरकार, प्रशासन या टूटती सांसे ….