महंगाई यानी स्फीति एक महत्वपूर्ण समस्या है। सिमित महंगाई या स्फीति के साथ विकास अर्थव्यवस्था के लिए हितकारी होता है। लेकिन अनियंत्रित मंहगाई आम लोगों के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक होता है।
प्रसिद्ध मौद्रिक अर्थशास्त्री सी.एन. वकील ने मंहगाई की तुलना एक डाकू से करते हुए कहा है कि "एक डाकू एक समय में एक व्यक्ति या परिवार को लूटता है, लेकिन स्फीति या मंहगाई सम्पूर्ण समाज को लूटता है।" केन्द्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा 3 -4 प्रतिशत की महंगाई दर को सामान्य माना गया है। इससे उपर होती हुई महंगाई दर आम लोगों के बजट को प्रभावित कर उन्हें उपभोग में कटौती के लिए बाध्य करती है। उपभोग में कटौती कुपोषण की समस्या पैदा करती है। अत:उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सी पी आई ) में तय सीमा से अधिक होना एक समस्या है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के अलावे थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यू पी आई) भी होता है, जो बड़े व्यापारियों के व्यापार को प्रभावित करते हैं। थोक व्यापारियों की चीजों में तेजी का परिणाम खुदरा मूल्यों में वृद्धि के रूप में परिलक्षित होती है।
महंगाई और सस्ती दो आर्थिक स्थितियाँ :-
महंगाई और सस्ती को आर्थिक शब्दावली में इन्फ्लेशन एवं डिफ्लेशन कहा जाता है। इन्फ्लेशन वह स्थिति है जिसमे वस्तुओं की कीमतें बढती हैं और मुद्रा की कीमत घटती है।इसके विपरीत डिफ्लेशन में वस्तु की कीमत घटती है और मुद्रा का मूल्य बढता है। वैश्विक आर्थिक जगत की दो घटनाएं – 1920 की मंदी और 1920 की तेजी -उदहारण के रूप मे प्रस्तुत किये जाते हैं। 1920 में जब जर्मनी में तेजी आई तो उपभोक्ता ने महंगाई की मार को इस तरह बयान किया ।
पहले हम जेब में मुद्रा (मार्क जर्मनी की मुद्रा )ले जाते थे, और टोकरी भरकर सामान लाते थे, लेकिन अब टोकरी में मुद्रा ले जाते हैं, और थैली में सामान लाते हैं । 1920 की विश्व प्रसिद्ध तेजी से संबंधित एक और उद्धरण उल्लेखनीय है ।एक पिता ने अपने दो पुत्रों को एक -एक लाख मार्क प्रदान किया। एक पुत्र ने अपना हिस्सा बैंक में जमा किया। दूसरा लड़का जो शराबी था, उसने बेशकीमती शराब की खाली बोतल को अलमारी में सजा सजा कर रखा । जब तेजी आई तो बैंक में जमा मार्क का मूल्य घट कर बहुत ही कम रह गया था, जबकि बोतलें इतनी महंगी हो गई थी कि वह एक अमीर व्यक्ति हो गया था। तो दायरे से उपर महंगाई की मार यही होती है। यह आम लोगों की गाढ़ी कमाई को लूटती है ।
महंगाई की अद्यतन स्थिति :-
अब हम एक नजर महंगाई की स्थिति पर डालेंगे । लॉकडाउन के पहले और बाद में महंगाई की दर की तुलना से यह स्पष्ट हो जाता है कि पिछले साल की तुलना मे इस वर्ष (2020 ) में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी खुदरा कीमतों मे काफी वृद्धि हुई है, जिसने आम उपभोक्ता के बजट को बिगाड़ दिया है । खुदरा महंगाई दर सितंबर 20 में बढ़कर 7.34 फीसद हुई, अगस्त में यह 6.69 फीसद थी। रिजर्व बैंक ने खुदरा महंगाई की उपरी सीमा 4% बताया है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सी पी आई) आधारित महंगाई दर अगस्त 2019 में 3.28 फीसद और अगस्त में 3.70 फीसद थी।
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ऑफ इंडिया की प्रमुख अर्थशास्त्री अदिति नायर कहती हैं "2020 के शुरुआती महंगाई दर खुश करने वाली नहीं रही। आशंका है कि सब्जियों की कीमतों में तो शायद गिरावट आयेगी, लेकिन दालें महंगी ही रहेगी।" उच्च महंगाई दर के लिए जिम्मेदार महत्वपूर्ण फैक्टर खाद्य पदार्थ की कीमतों में वृद्धि है, जो अक्टूबर 2020 में 11.07% पर है। यह सितंबर में 10.68% थी। अभी अक्टूबर में खुदरा महंगाई दर 7.61% है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई )पर यह खुदरा महंगाई पिछले साढ़े छह वर्षों का यह उच्च स्तर है ।इससे पहले May 2014 में खुदरा महंगाई दर 8 .33 प्रतिशत थी।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आर बी आइ) द्वारा 13 नवम्बर को जारी रिपोर्ट में भी महंगाई के नियंत्रण से बाहर जाने का उल्लेख है। महंगाई बढ़ने की वजह से ही नीतिगत ब्याज दरों में कटौती की संभावना कम गई है । रिपोर्ट में आम रसोई घरों में प्रयुक्त होने वाली 19 आवश्यक खाद्य सामग्रियों की खुदरा कीमतों में पिछले कुछ महीनों में हुई वृद्धि का उल्लेख इस बात का सबूत है कि महंगाई दर अनियंत्रित हुई है।
आंकड़े बताते हैं कि सितम्बर, 2019 की तुलना में सितंबर, 2020 में 19 खाद्य सामग्रियों की कीमतों में 11.46 %की वृद्धि हुई है। अक्टूबर 2019 की तुलना में अक्टूबर 2020 में इस उत्पादों की कीमतें लगभग 11 प्रतिशत ज्यादा हैं। आरबीआई ने भी कहा कि इस वित्त वर्ष की शुरुआत से ही आवश्यक खाद्य सामग्रियों की खुदरा कीमतों में तेजी का दौर जारी है ।
एमके वेल्थ मैनेजमेंट के हेड (रिसर्च) डाक्टर जोसफ थामस का कहना है कि खाद्य महंगाई के 11प्रतिशत के स्तर पर पहुंचना अनुमानों से काफी ज्यादा है ।
खुदरा महंगाई की दर में वृद्धि के चलते सकल महंगाई दर मे भी वृद्धि हुई है, जिसका सीधा असर आम उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ा है । हर कोई उपभोक्ता है । मैं भी एक उपभोक्ता हूं । मैं स्वयं खाद्य सामग्री खरीदता हूं ।मेरा अनुभव है कि सभी प्रकार की सामग्रियों की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। दलहन और तिलहन की सामग्रियों की कीमतों में 15 -20 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है । दूध की कीमत में तो 35% की वृद्धि हुई है। आलू और प्याज की कीमतों मे कोरोनाकाल में दोगुनी वृद्धि हुई है। चाय, जो आम पेय है , की पत्तियों की कीमत में काफी वृद्धि हुई है । मैं ,जो चाय पत्ती ₹ 420 किलो फरवरी माह में खरीदे थे, वही चाय कुछ दिन पहले ₹480 किलो खरीदे । स्पष्ट है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी खुदरा मूल्य सूचकांक में काफी वृद्धि हुई है, जिसने आम लोगों को अपने उपभोग स्तर में कटौती के लिए बाध्य किया है ।न केवल खाद्य पदार्थों की कीमतें असामान्य रूप से बढी हैं, बल्कि आम प्रयोग वाली दवाइयों की कीमतों में 20 -30 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है । पेट्रोल और डीजल की कीमतों में भी 15 -16 %की वृद्धि दर्ज की गई है ।
अब अहम सवाल है कि बावजूद इसके यह आज कोई जनहित की समस्या नही दिखती । न ही इसके लिए किसी संगठन द्वारा विरोध प्रदर्शन ही किया जाता है । दूसरी ओर छोटे -छोटे वक्तव्यों के विरूद्ध सत्ताधारी एवं विपक्ष के समर्थक टावर पर एक दूसरे का पुतला दहन करते रहते हैं । लेकिन बढ़ती एवं परेशान करती महंगाई के विरुद्ध न तो किसी श्रम संगठनो द्वारा और न ही किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा ही विरोध प्रदर्शन किए जाते हैं । अलबत्ता महंगाई पर भाषण जरूर देते हैं । महंगाई नियंत्रण के दो प्रमुख उपाय हैं ।एक मौद्रिक उपाय, और दूसरे वित्तीय उपाय। दोनों उपाय प्रयोग में समय समय पर लाये जाते हैं, लेकिन बाजार मैकेनिज्म एवं बिचौलिए के जाल में फंस कर निष्प्रभावी साबित होते हैं ।
लगता है इस समस्या से हमलोगों ने समझौता कर लिया है। एक तो हम इस समस्या से उत्पन्न खर्च वृद्धि को अन्य तरीके अपनाकर पूरा करने में संलग्न हो जाते हैं ।आन्दोलन, अनशन, धरना-प्रदर्शन की अपेक्षा अन्य तरीकों का इस्तेमाल आसान होते हैं । पहला तरीका रिस्की भी है, जबकि दूसरे उपाय में पूरी व्यवस्था जिसके हम सभी कमोबेश भागीदार हैं । मेरी समझ में एक और अहम कारण है, वह यह कि गरीबी रेखा से नीचे गुजर करने वाले बहुतायत ग्रामीण एवं शहरी लोगों के लिए अनेकों कल्याणकारी योजनाएं जिनसे इनकी जिन्दगी में बेहतरी आई है । ये लोग ही आन्दोलन का प्रमुख हिस्सा होते थे। मैं इनकी कल्याणकारी योजनाओं का विरोधी नही, पक्का समर्थक हूं । कब तक ये लोग आन्दोलन के लिए प्रयुक्त होते रहते । मध्यम वर्ग के लोग, जिनकी आबादी समाज में सबसे ज्यादा है, जो सबसे ज्यादा महंगाई से पीड़ित हो रहे हैं, वे आन्दोलन के लिए क्यों नही उतरते? 1966 और 1974 के आन्दोलनों का मुख्य हिस्सेदार कौन थे? यही वर्ग था। यही वर्ग जुगाड़ की व्यवस्था में है, तो आन्दोलन कौन करेगा ।
समस्या होते हुए भी, महंगाई आज समस्या नहीं प्रतीत होती, जबकि यह डकैत एक समय, एक साथ हम सभी की जेब कटाई कर रहा है ।
By: डॉक्टर नागेश्वर शर्मा , संयुक्त सचिव, भारतीय आर्थिक परिषद् (बिहार -झारखंड)