देवघर।
कोरोना महामारी के चलते पिछले 10 माह से स्कूले बंद है। ऐसे में स्कूलों से जुड़े प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाखों लोगों का रोजगार प्रभावित हुआ है। जिस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा हैं।
स्कूलों के साथ कई सारे वर्गों का आर्थिक पहलू जुड़ा हुआ होता है। शैक्षणिक गतिविधियों पर ही स्टेशनरी दुकानें, कपड़े की दुकानें, जूतों की दुकानें, नाश्ते वाले, केबिन वाले, केन्टीन, फोटो कॉपी, कंप्यूटर सेन्टर, ऑटो रिक्शा, हॉस्टल, लाइब्रेरी, टिफिन सेन्टर, लोण्ड्री व ड्राइवर समेत कई सारे सैकड़ों वर्ग ऐसे हैं, जिनका रोजगार स्कूलों पर आधारित है। अब जबकि पिछले 10 माह से स्कूलें बंद हैं तो इनका रोजगार भी बन्द है। ऐसे में कइयों ने तो धंधा ही बदल दिया है, तो कई अभी भी बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। कई इसी आशा में है कि कब सरकार स्कूलें खोलने की अनुमति दें और उनकी भी रोजी-रोटी चलनी शुरू हो।
बच्चे भी नहीं कर पा रहे सही से पढ़ाई
शिक्षा विभाग की ओर से कोरोना काल के बाद से सरकारी स्कूलों के बच्चों को घर जाकर होमवर्क देने, जांचने और ऑनलाइन शिक्षण कार्य के तहत शिक्षकों से कार्य करवाया जा रहा है, लेकिन ग्रामीण अंचलों में बच्चों के पास ना तो एंड्रोयड या स्मार्ट फोन है और न ही वे ऑनलाइन क्लास ज्वाइन कर पा रहे हैं। ऐसे में इन बच्चों की पढ़ाई भी पिछले दस महीने से बंद ही है।
इनका कहना…
मैंने मेरी वैन स्कूल में बच्चों को लाने ले जाने के लिए अनुबंध पर लगा रखी थी, लेकिन 10 माह से स्कूलें बन्द होने से बेरोजगार हूं।- वेदव्यास, वाहनचालक
हमारी स्टेशनरी की दुकानें है, लेकिन 10 माह से स्कूलें बंद होने से व्यापार एकदम ठप है। किराया भाड़ा भरना भी भारी पड़ रहा है। – शंकर, महेन्द्र
मैं स्कूल के सामने नाश्ते की लॉरी लगाता था। अब 10 माह से बेरोजगार हूं। – राजीव
इन लोगों का कहना है कि एक सरकारी या गैर सरकारी स्कूल के आसपास 100 से 200 व्यक्तियों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता हैं। सरकार कोरोना नियम के साथ जल्द से स्कूलें खोलने के आदेश दे तो सभी वर्गों की रोजी-रोटी की हालत पटरी पर लौट सकेगी।
वहीं, बता दें कि झारखंड में 21 दिसम्बर से 10वीं से 12वीं तक के बच्चों के लिए नियमों का पालन करते हुए स्कूलों को खोलने का निर्देश सरकार द्वारा दिया गया है। जिसके लिए अभिभावकों की अनुमति अनिवार्य बताया गया है।