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करौं/देवघर।
बेटी पढ़ाओ, बेटी बढ़ाओ जैसी केंद्र व राज्य सरकार की तमाम योजनाओं की पहुंच से कोसों दूर 15 साल की पुटकी पिछले सात साल से मछली बेचकर अपने बीमार पिता और तीन भाई बहनों के लिये उम्मीद की किरण बनी हुयी हैं।
करौं गांव के कापरी टोला निवासी मनसा कापरी की पंद्रह वर्षीय पुत्री हर रोज हाट के पास पुरूष विक्रेता के बगल में बैठकर पछली बेचती है। धुप में पसीने से लथपथ किशोरी को मछली बेचता देख कोई उसकी बेबसी पर दया नहीं दिखाता है। ज्यादातर लोग उसे नजरअंदाज करते हुये गुजर जाते हैं।15 वर्षीया पुटकी बताती है कि उसके पिता की तबियत काफी दिनों से खराब है। वे चलने-फिरने में सक्षम नहीं है। पहले उसके पिता मछली बेचकर किसी तरह से परिवार का गुजारा कर लेते थे। लेकिन जबसे उनकी तबियत खराब हुई है, तब से वो कोई भी काम नहीं कर पाते। मजबूरी में घर की बागडोर पुटकी ने संभाली।
प्रतिदिन दो से तीन सौ रूपए कमा लेती पुटकी
पुटकी ने बताया कि गरीब परिवार में जन्म लेने के कारण पढ़ाई नहीं कर पायीं। पिता को मछली बेचते उसने बारीकी से देखा। उसने आगे चलकर यह धंधा करने की सोची। उधर पिता के बीमार पड़ने पर हालात ने उसे कुछ करने पर विवश कर दिया। वह पिछले सात वर्षां से करौं में मछली बेच रही हैं। हालांकि इस धंधे में पुरूर्षों का वर्चस्व है। लेकिन उसे किसी प्रकार का संकोच नहीं। अपने बलबूते कभी सारठ तो कभी करमाटांड़ से मछली खरीदना और उसे करौं में बेचना दिनचर्चा बन गई है। उसने बताया कि घर की परिस्थिति को देख उसका भाई भूदेव कापरी कमाने के लिए मुंबई गया था। लेकिन लाॅकडाउन के कारण वह घर वापस लौट आया।
सरकार से मिला आवास व पेंशन
पुटकी के पिता मनसा ने बताया पंद्रह वर्ष पूर्व सरकार से एक मछुआ आवास मिला है। वर्तमान में घर बिल्कुल जर्जर हो चुका है। राशन कार्ड बना है। जिससे चावल मिल जाता है। वहीं सरकार द्वारा उसे वृद्धावस्था पेंशन भी मिल रहा है। पिता ने कहा कहा कि मेरा इलाज बेटी ही कराती है। ईश्वर करे ऐसी बेटी सबको दे।