करौं/देवघर।
वो कहते हैं न उड़ने के लिए पंखों की नहीं हौंसलों की ज़रूरत होती है। ये कहावत चरितार्थ कर रहे बलदेव मंडल। जिनकी दिव्यांगता पर इनका जज़्बा भारी है।
सुबह का समय। एक दिव्यांग वृद्ध हाथों में कुदाल लेकर अपनी खेतों की ओर चल पड़ता है। हर रोज़ दो से तीन घंटे खेतों में काम करके ही दम लेता है। न कोई परेशानी और न किसी प्रकार उत्साह में कमी, शारीरिक निःशक्तता का भी कोई अफसोस नहीं। उसी उत्साह से लबरेज होकर अपने खेतों में उगे सब्जियों को बेचने के लिए बाजार की ओर भी निकल पड़ता है। यह कहानी है करौं निवासी 65 वर्षीय बलदेव मंडल की।
इनकी अदम्य साहस व परिश्रमी स्वाभाव यहां के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इनको देखने से लगता है कि यदि इंसान मन में कुछ करने को ठान ले तो सफलता उनके कदम चूमती है। जिसे बलदेव ने करके दिखाया है। बलदेव के पास मात्र दस कट्ठा जमीन हैं । उन्होंने मेहनत कर साग, फूलगोभी, बैंगन, टमाटर, प्याज, लहसुन, धनिया आदि लगाया। वर्तमान में सिर्फ पालक साग को बेचकर 40 से 50 रूपये की आय हर रोज़ हो जाती है। जिससे परिवार के पांच सदस्यों का पालन पोषण करता है। सब्जी बेचने के अलावा जीविका का साधन इनके पास नहीं है।
इलाज के अभाव में खोना पड़ा पैर
उन्होंने बताया कि पैर में सेप्टिक हो जाने के कारण उसे कटवाना पड़ा। कहीं से उसे एक नकली पैर मिला। जिसे लगाकर लाठी के सहारे चलफिर रहा हूँ। उन्होंने कहा कि यदि सही इलाज होता तो उन्हें पैर खोना नहीं पड़ता। वहीं 45 वर्ष पूर्व गले में गांठ जैसा पड़ गया। इलाज कराने धनबाद जाना पड़ा। परंतु इलाज मंहगा होने के कारण बिना समुचित इलाज कराए वापस घर लौटना पड़ा। इतना सबकुछ होने के बावजूद उन्होंने परिस्थिति से हार नहीं मानी। उन्होंने बताया कि सरकारी मदद के तौर पर इंदिरा आवास, पेंशन व राशन मिल रहा है। उन्होंने उत्साह से लबरेज होकर कहा कि अगर सरकारी मदद मिल जाती तो वे बेहतर तरीके से खेती कर सकते हैं। बलदेव ने बताया कि सरकारी स्तर पर उसे वृद्धावस्था पेंशन, प्रधानमंत्री आवास एवं राशन कार्ड की सुविधा मिल चुकी है।
करौं मुखिया स्तरूपा राय ने कहा बलदेव को हरसंभव मदद देने का प्रयास किया जाएगा। सरकारी स्तर पर कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उन्हें मिल रहा है।