देवघर।
बचपन से मैं देवघर के इर्द-गिर्द साइकिल से घूमता था। यहाँ के रास्ते, पहाड़, जंगल देख कर ही बड़ा हुआ। बड़े-बड़े कोठिओं पर भी बाहर से नजर पड़ती थी और तब सोचता था, इन महलों में कौन रहता होगा?
यहाँ साल में दो तीन महीने बड़ी संख्या में बंगाली और मारवाड़ी सैलानियों का आना-जाना लगा रहता था। फिर बड़े-बड़े बंगले वीरान पड़े रहते सालों भर।
जहां तक याद है, देवघर जिला (1980) बनने बाद से ही आधुनिकता ने यहाँ दस्तक देनी शुरू कर दी। मैं 1985 से 6 वर्ष कला के प्रशिक्षण के लिए कोलकाता में रहा। जब लौटा तो देवघर में परिवर्तन साफ दिखाई देने लगा। पलाश, महुआ, सखुआ के पेड़ धीरे-धीरे कम होने लगे। आसपास के तालाब भरने लगे थे। कॉलोनी बनने लगी थी। उन्हीं दिनों में पता नही कैसे दिमाग में आया, क्यों न इस बदलते देवघर के रूप को अपने पेन्टिंग के माध्यम से संजो कर रखें!
जल रंग के माध्यम से देवघर के पहाड़, एकमात्र नदी (डढवा), जंगल एवं पुराने मकानों का एक श्रृंखला बनाना शुरू किया। दो चार पेन्टिंग से शुरू करते करते आज तक करीब 132 पेन्टिंग तैयार कर चुका हूँ। नाम रखा गायब होता हुआ देवघर ( Vanishing Deoghar)
हमें पता है परिवर्तन मनुष्य का, समाज का, शहर का, सभ्यता का नियम है। पर एक कलाकार के दृष्टि में ये परिवर्तन बड़ा कष्टदायक होता है। मैं ये परिवर्तन, अच्छा है या बुरा है- ये कहना नही चाहता हूँ। केवल अपने बचपन में देखे हुए यादों के देवघर और आज के देवघर में जो परिवर्तन दिखता है उसे दिखाना चाहता हूँ।
मैंने जिन भवनों का पेन्टिंग तैयार की है. उनमें कुछ इतिहास से जुड़ा है, कोई अपने वास्तुकला के लिए आकर्षित करता है, कोई काल के नियमानुसार स्वयं धूमिल हो गया जिसका रंग रूप बड़ा ही कलात्मक था।
जिन भवनों को रिनोवेशन किया गया है उसकी पेन्टिंग मैंने नही की। कई ऐसे मकान थे जिन्हें मैं अपनी पेन्टिंग के जरिये उकेरना चाहता था लेकिन वहां जब गया तो नई कॉलोनी दिखी। कई भवनों में प्रवेश वर्जित होने के कारण उसे सम्पूर्ण रूप कभी देख नही सका।
एक कलाकार के लिए रूप, रंग, रेखा ही मुख्य दर्शन होता है और मैंने भी अपने इस श्रृंखला के सभी पेन्टिंग में उसे ही दिखाने की कोशिश किया है। आगे इसे एक एल्बम का रूप देने की परिकल्पना है। इन पेंटिग्स को बनाने में मैंने पुरानी स्केच, फोटो और गूगल का सहारा लिया है। अनुशीलन से अपनी कल्पना को रूप दे रहा हूँ।
यहाँ दस पेंटिंग्स की तस्वीर दे रहा हूँ, देखें:-
नौलखा मंदिर का वर्तमान रूप (बनाने की तिथि:13.07.2020)
कैलाश पहाड़ आश्रम, जसीडीह (बनाने की तिथि:12.08.2020)
साल 2000 में नंदन पहाड़ का रूप ( बनाने की तिथि: 11.08.2020)
118 साल पुरानी राज नारायण बोस पुस्तकालय का वर्तमान रूप, ( बनाने की तिथि: 21.07.2020)
बचपन से देखता रहा संत मेरी चर्च के पादरी का मकान ( बनाने की तिथि: 21.08.2020)
देवघर बाज़ार स्थित बैजु मंदिर ( बनाने की तिथि: 22.08.2020)
गुरूकुल- अभी उसे तोड़ कर हवाई अड्डे का विस्तारीकरण किया गया है ( बनाने की तिथि: 07.12.2012)
हरि का बंगाली धर्मशाला ( बनाने की तिथि: 09.05.2014)
संथाल पहाड़ियाँ सेवा सदन ( बनाने की तिथि: 12.05.2014)
1995 का देवघर। स्टेट बैंक, साधना भवन के छत से देवघर की एक झलक (बनाने की तिथि: 17.08.1995)