रांची।

महज नौ महीने के भीतर झारखंड के डीजीपी के पद से आइपीएस कमल नयन चौबे को हटाए जाने के मामले में संघ लोक सेवा आयोग ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर जवाब मांगा है। ऐसी क्या परिस्थिति सामने आई कि एक वरिष्ठ व निर्विवाद पुलिस अफसर को महज नौ महीने के अंदर ही पद से हटा दिया गया। अब राज्य सरकार से मिलने वाले जवाब की यूपीएससी समीक्षा करेगी।

सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस के अनुसार किसी भी राज्य में डीजीपी के पद पर एक आइपीएस अधिकारी को कम से कम दो साल के लिए रहना है।
गौरतलब है कि 31 मई 2019 को झारखंड के डीजीपी डी.के पांडेय की सेवानिवृत्ति के बाद 1986 बैच के आइपीएस अधिकारी के.एन चौबे को झारखंड का डीजीपी बनाया गया था। उनकी नियुक्ति दो साल के लिए हुई थी, लेकिन झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार बनी और 16 मार्च 2020 को ही डीजीपी पद से कमल नयन चौबे का स्थानांतरण हो गया और उनके स्थान पर 1987 बैच के आइपीएस अधिकारी एम.वी राव को राज्य का प्रभारी डीजीपी बनाया गया। हालांकि अब तक एम.वी राव की सेवा स्थाई नहीं हो सकी है।
सुप्रीम कोर्ट में 30 जुलाई को एक याचिका दाखिल हुई है, जिसमें राज्य के प्रभारी डीजीपी एम.वी राव की नियुक्ति को चुनौती दी गई है। इसमें राज्य सरकार, यूपीएससी और एमवी राव को पार्टी बनाया गया है।
इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अदालत में 13 अगस्त को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की तिथि निर्धारित है। यूपीएससी राज्य सरकार के तर्क की समीक्षा के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखेगी।
सुनवाई से पूर्व ही आईपीएस एम.वी राव ने अपने वकील को यह स्पष्ट कर दिया है कि इस नियुक्ति में उनकी कोई भूमिका नहीं है। वे राज्य सरकार के अधीन हैं।