रांची।
तुम तो ऐसे नहीं थे शशि ( शशिभूषण द्विवेदी)। साथ हँसते-गाते रहे थे। रोने के लिए अकेला छोड़ गए। क्या पता था कि बमुश्किल 10 दिन पहले जब तुम ‘राजकमल’ (Rajkamal Prakashan Samuh) के पेज पर लाइव मिले, वह हमारी आख़िरी मुलाक़ात बन जाएगी। तुमको अंतिम बार कहानी पढ़ते सुनूँगा। मन बेचैन है। कई बातें याद आ रही हैं।
साल 2002 के जून की वह दोपहर। जब हम पहली बार मिले। दैनिक जागरण, बरेली की वह नौकरी। देर रात या यूँ कहें अल सुबह 3-4 बजे दफ़्तर से वापसी। बरेली जंक्शन के बाहर मोटू की वह चाय दुकान। आधी रात बाद वहाँ की अड्डेबाज़ी। जो कभी-कभी पौ फटने तक जमती थी। दुबले-पतले तुम। ‘हंस’ में छपी तुम्हारी कहानी ‘खिड़की’। सुभाष नगर वाला तुम्हारा कमरा। उसमें भी एक खिड़की थी। मेरे स्कूटर पर हमारी-तुम्हारी बगैर हेलमेट वाली सवारी। कैसे भूलेंगे यह सब। वह दिन याद है। जब मैंने अपनी पत्नी और बेटे को मोतिहारी से बरेली लाने का सोचा। तखत (चौकी) नहीं थी, तो अख़बार बिछाकर बेड नीचे लग गया। पैसे नहीं थे, जो गैस कनेक्शन लें। तब तुमने अपना वह छोटा वाला गैस स्टोव दिया। घर से बाहर पहली बार बसी गृहस्थी की पहली रोटी तुम्हारे दिए उधार के चूल्हे पर बनी। तब तुम खुद खाना न बनाकर टिफ़िन मँगाते थे। तुम नए-नए कहानीकार बन रहे थे। ‘हंस’ के बाद ‘उत्तर प्रदेश’ ने भी तुम्हें छापा था। उन्हीं दिनों वीरेन डंगवाल सर के यहां की बैठकें। बहुत बातें हैं यार। साल भर बाद मुरादाबाद चला गया। तुम भी अमर उजाला चले गए। तुम बड़े कहानीकार बनते चले गए। मैं भी इधर-उधर घूमते-फिरते राँची पहुँच गया। हमारी मुलाक़ातें कम हो गईं। दिल्ली की कुछ गिनती की मुलाक़ातों से कभी मन नहीं भरा। ज्ञानपीठ से प्रकाशित तुम्हारा संग्रह ‘ब्रह्महत्या तथा अन्य कहानियां’ अभी मेरे सामने है। मानो तुम्हीं बैठे हो। रुला गए यार। यह उम्र जाने की नहीं थी। अलविदा Shashi Bhooshan Dwivedi, बहुत याद आओगे।
हम-आप और इस मुल्क की साहित्यिक बिरादरी जानती है कि 26 जुलाई 1975 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में जन्मे शशिभूषण द्विवेदी को भारतीय ज्ञानपीठ का पहला ‘नवलेखन पुरस्कार', 'सहारा समय कथा चयन पुरस्कार', और 'कथाक्रम कहानी पुरस्कार' मिल चुका है। ‘खिड़की’ के अलावा ‘एक बूढ़े की मौत', ‘शालीग्राम’, ‘कहीं कुछ नहीं', 'खेल', 'छुट्टी का दिन' और 'ब्रह्महत्या' जैसी उसकी कहानियों ने भारतीय हिन्दी साहित्य में अमिट हस्ताक्षर किए हैं। साल -2005 में उसका पहला कहानी संग्रह ‘ब्रह्महत्या तथा अन्य कहानियाँ’ भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुआ। इसके बाद राजकमल प्रकाशन ने 2018 में उसका दूसरा कहानी संग्रह छापा। नाम है – ‘कहीं कुछ नहीं’। इस संग्रह की कहानियाँ भी काफ़ी चर्चित रहीं।
कथाकार शशिभूषण द्विवेदी की असामयिक मृत्यु से हिन्दी जगत एवं साहित्य प्रेमियों के बीच गहरा शोक व्याप्त है. सात मई को ह्दयगति रूकने से 45 वर्ष के शशिभूषण द्विवेदी की मृत्यु हो गई.