रांची।
आज पुरे भारत में स्कूल बंद हैं और बच्चों को ऑनलाइन पढ़ने पर जोर दिया जा रहा है। यानि घंटो कंप्यूटर और मोबाइल के सामने।
अखबारों में पढ़ा कि अमेरिका में स्कूल और विश्वविद्यालय अब 2021 में खुलेंगे। अब ये कितना सत्य है नहीं पता। अब रही बात यहाँ बच्चों की ऑनलाइन पढाई की । क्या ये इतना जरुरी है कि बच्चों के स्वास्थ को दाव पर लगा दें।
हमलोग लगातार अगर मोबाइल या कंप्यूटर पर काम करते हैं तो आँखों में दर्द और सर भारी होने लगता है। अगर बच्चों को जब हमलोग किसी आंख के परेशनी के चलते आंख के डॉक्टर के पास ले जाते हैं तो उनका पहला प्रश्न होता है की मोबाइल कितना देखते हो। मत देखा करो ज्यादा, यही डॉक्टर की राय होती है।
बच्चे अपने मनोरंजन चीज देखने के साथ अब पढाई भी कर रहे हैं कंप्यूटर में यानि 8 से 10 घंटे रेडिएशन और तेज़ रौशनी के सामने। यानि आँख का रेटिना उतना ही प्रभवित होगा। सर दर्द, गर्दन दर्द और अनिद्रा अलग से। आंखों का एकटक मोबाइल फोन या कंप्यूटर स्क्रीन पर टिके रहना, उसकी सेहत को डैमेज कर सकती है। आंखों को ड्राई करेगी और इससे आंखों में खुजली और जलन होगी। कम उम्र में ही चश्मा लग जायेगा। अगर किसी के घर में दो से ज्यादा बच्चे हैं तो सबके लिए अलग से मोबाइल या फिर कंप्यूटर और नेट का खर्चा अलग। जिनके पास क्षमता है वो तो अलग-अलग मोबाइल दे देंगे लेकिन जो गरीब हैं उनका क्या ? यानि सेहत के खिलवाड़ साथ साथ ऊपर का खर्चा अलग।
अगर अभी के इस विपदा में बच्चे अगर तीन चार महीने न भी पढ़े तो क्या भारत विश्व में पिछड़ जायेगा या फिर बच्चे अनपढ़ रह जायेंगे। कॉलेज के दिनों में हमलोगों को कहा जाता था कि टीवी दूर से देखो और ज्यादा मत देखो नहीं तो आंख ख़राब हो जायेगा। अब तो स्कूल प्रशासन ही बच्चों को बढ़ावा दे रही है की ज्यादा से ज्यादा मोबाइल के रेडिएशन में रहो। शिक्षक भी उतने ही प्रभावित होंगे।
ज्यादा बेहतर ये होता कि स्कूल के पाठ्यक्रम मेंं थोड़ा बदलाव लाके उसको थोड़ा कम करके लॉक डाउन के बाद बच्चों को पढ़ाया जाता।