प्रत्येक देश का अपना एक केंद्रीय बैंक होता है । हमारा केन्द्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया है । यही वह बैंक होता है जो नोट छापने का कार्य करता है।इस बैंक का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य देश की आवश्यकता के अनुरूप मौद्रिक नीति का संचालन करना। केंद्रीय बैंक चुंकि बैंको का बैंक होता है, इसलिए यह कार्य केंद्रीय बैंक द्वारा ही संपन्न किया जाता है । यह एक तथ्यात्मक सत्य है कि भारतीय अर्थव्यवस्था विगत दो वित्तीय वर्षों से सुस्ती की मार झेल रहा है । विकास दर में निरंतर गिरावट दर्ज की गई है । रेटिंग एजेंसी के एक अनुमान के अनुसार यह अपने निचले स्तर 1.9 प्रतिशत आ पहुँचा है । हमारा जी डी पी ग्रोथ रेट हिन्दू ग्रोथ रेट जो 1990 के पहले रहता था, वही पहुंच गया है ।
कोरोना जिसने वैश्विक महामारी का रूप ले लिया है, ने पूरी विश्व अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है । पूरे विश्व अर्थव्यवस्था को 9 लाख ट्रिलियन का नुकसान कोरोना के चलते हुआ है । इस महामारी ने पहले से ही सुस्त चल रही हमारी अर्थव्यवस्था को जबर्दस्त झटका दिया है ।लॉकडाउन के फलस्वरूप सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों में उत्पादन बंद होने की वजह से बेरोजगारी, विपरित पलायन, बीमारी, आवासन एवं दिहाड़ी मजदूरों के भोजन आदि की व्यवस्था से सरकारों को जूझना पड़ रहा है ।
इस विपरीत एवं संकट की घड़ी में रिजर्व बैंक के गवर्नर ने अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए विभिन्न मौद्रिक उपायों की घोषणा की है । देखना है कि इन उपायों का अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा?
सबसे पहले हम रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट के प्रभावों पर विचार करेंगे ।
ये दोनो साख की मात्रा को प्रभावित करने के दो प्रमुख अस्त्र हैं । रेपो रेट वह दर है जिस दर पर केन्द्रीय बैंक व्यवसायिक बैंक को अल्पावधि के लिए कर्ज प्रदान करता है । इसमे कमी या वृद्धि से व्यावसायिक बैंक द्वारा कर्ज प्रदान सस्ता या महंगा हो जाता है ।कर्ज सस्ता होने पर निवेशक अधिक मात्रा में कर्ज लेकर विनियोग प्रारंभ करते हैं, फलत: विकास का चक्र आगे की ओर घूमने लगता है और विकास के सारे मानकों वृद्धि दिखने लगता है ।लेकिन इस उपाय से महंगाई बढ़ने का खतरा रहता है । इसके विपरीत इस दर में वृद्धि के उल्टे परिणाम होते हैं । रिवर्स रेपो रेट वह दर है, जिस पर बैंक अपनी बचत राशि को केन्द्रीय बैंक के पास रखते हैं । इस दर में वृद्धि से व्यावसायिक बैंक अधिक लाभ कमाने के लिए अधिक बचत राशि जमा करते हैं । इससे उसके कर्ज देने की शक्ति घटती है। इससे विपरीत की स्थिति मे कर्ज देने की क्षमता बढ़ती है । दोनों दरो मे कमी कर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया अर्थव्यवस्था में निवेश की मात्रा बढ़ा कर उसमे नयी जान फूंकने की कोशिश कर रहा है । इन दो आर्थिक विटामिन्स की सूई अर्थव्यवस्था को दी जा रही है ।
इन दो उपायों का प्रयोग पहले भी किया जा चुका है, लेकिन अपेक्षित परिणाम नही मिला है । अर्थशास्त्र में एक बहुत ही प्रचलित उक्ति है कि, "आप घोड़े के तालाब के किनारे ले जा सकते हैं, लेकिन वह तभी पानी पीयेगा, जबकि उसे प्यास लगी रहेगी ।"
मुद्रा विमुद्रीकरण एवं जी एस टी के कार्यान्वयन के बाद खासतौर पर मझोले, छोटे और सूक्ष्म स्तर के उद्यमियों मे निराशा की भावना है । वे भविष्य के प्रति आश्वस्त नही हैं । वे नये निवेश से कतरा रहे हैं । जहां तक रिवर्स रेपो रेट में 0.25 प्वाइंट बेसिस की कमी का सवाल है तो निश्चित रूप से बैंको की नगदी बढने से कर्ज देने की क्षमता बढ जायेगी । पर नये छोटे,मझोले, एवं सूक्ष्म स्तर के उद्यमियों के लिए कर्ज प्राप्त करने में काफी समय लग जाता है, प्रतिभूति के बिना संभव भी नही होता है । इसलिए अर्थव्यवस्था पर तुरंत इन उपायों का असर देखने को नही मिलता है ।
इस बार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर ने अतिरिक्त उपायों की घोषणा की है । उन्होंने 50 हजार करोड रूपये, देश की विशालता को देखते हुए जो पर्याप्त नही है, फिर भी उन बैंको को दिया है जिनका सरोकार कृषकों, ग्रामिणो , छोटे उद्योगों एवं गृह निर्माण करने वाले से है । अगर इस उपाय का सही एवं त्वरित उपयोग हुआ, तो ग्रामीण एवं कृषि व्यवस्था मे निवेश बढ सकता है, जिसके अच्छे परिणाम दिख सकते हैं ।लेकिन यह राशि ड्रॉप इन दी ओसेन यानी ऊंट के मुंह में जीरा का फोड़न।
मेरी राय में हमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जान फूंकना होगा । याद रहे तीव्र शहरीकरण के बावजूद आज भी 68 प्रतिशत लोग गांवों मे ही निवास करते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि "भारत की आत्मा गांवों में निवास करती है " हमे भारत की आत्मा को पुष्ट कर ही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का प्रयास करना होगा ।