फिलहाल तो कोरोना वायरस से उत्पन्न महामारी से लड़ना हमारी सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है ।हम सभी भारतवासियों को इस संकट की घड़ी में सरकार के साथ मिलकर काम करना एवं निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है ।तभी हम कोरोना पर विजय प्राप्त कर सकते हैं ।
हमारी अर्थव्यवस्था एक विकासशील अर्थव्यवस्था है । वित्तीय वर्ष 2017-18 तक हमारी अर्थव्यवस्था सबसे ज्यादा तेजी से विकास करने वाली लक्छ अर्थव्यवस्था थी । उसके बाद हमारी जीडीपी ग्रोथ रेट में लगातार गिरावट दर्ज की गई है । कहते हैं कि 'मैन प्रपोजेज , गॉड डिसपोजेज '। हमारे माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी का लक्ष्य है 2024 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का यानी दुनिया की तीसरी सबसे अमीर अर्थव्यवस्था । इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रति वर्ष विकास की रफ्तार 10-12 प्रतिशत होनी चाहिए । धीमी रफ्तार को देखते हुए यह पहले से ही संभव नही लग रहा था, अभी की हालत में बिल्कुल ही संभव नही लग रहा है ।
कोरोना ने अर्थव्यवस्था को जबरदस्त झटका दिया है। हम पहले से ही बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं । 2017 के बाद बेरोजगारी पर कोई सरकारी रिपोर्ट प्रकाशित नही हुई है। बेरोजगारी का गैरसरकारी रिपोर्ट बताता है कि प्रति वर्ष श्रम बाजार में 10-12 मिलियन श्रम शक्ति प्रवेश करती है , लेकिन 80-90 लाख लोग ही नौकरी पाते हैं । यह तो हुई कुशल श्रमिकों की बात। अकुशल श्रमिकों की बात करें तो स्थिति और भी भयावह है ।
दिहाड़ी मजदूरों की अलग समस्या है। वे तो अनौपचारिक सेक्टर में भी नही आते हैं। कोरोना के चलते पिछले बीस दिनों से संगठित एवं असंगठित क्षेत्रों में लाकडाउन के कारण कार्य ठप है। पहले से ही अर्थव्यवस्था सुस्ती की मार झेल रही है। विभिन्न बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने बडे पैमाने पर छंटनी की थी ।निवेश करना बंद कर दिया था ।अब तक भारत मे 80लाख बेरोजगार हो चुके हैं अमेरिका मे तो यह ऑकडा दो करोड तक पहुंच गया है ।भारतीय स्थित अमेरिकी कम्पनियां यहाँ भी छंटनी की बात कर रही है ।लाकडाउन के चलते मजदूरों के विपरीत पलायन ने राज्यों के समक्ष समस्या पैदा कर दी है ।ऐसे मजदूर पूरे देश में लाखों मे है ।आने वाले समय में इनके लिए रोजी-रोटी की व्यवस्था करनी एक चुनौती होगी ।
सुस्ती से सबसे ज्यादा वही सेक्टर प्रभावित हुआ है, जो ज्यादा रोजगार प्रदान करते हैं । ये हैं – रियल एस्टेट सेक्टर सर्विस सेक्टर विनिर्माण क्षेत्र एवं आइ टी सेक्टर । सुस्ती दूर करने के लिए जो भी वित्तीय एवं मौद्रिक उपाय किए गए सभी पूर्ति पक्ष को प्रोत्साहित करने वाले थे ।बाजार की दो शक्तियां – मांग और पूर्ति ।मांग पहले तब पूर्ति ।नोटबंदी के बाद से ही बाजार मे मांग की शक्ति कमजोर हुई है ।उपभोक्ताओं के पास क्रयशक्ति के अभाव में ऐसा हुआ ।मैं अर्थशास्त्र का अदना छात्र हूं ।पता नही मांग सृजन की बात क्यों नही हुई ? मांग सृजन के लिए प्रसिद्ध अर्थशास्त्री केन्ज के रोजगार सिद्धांत को अपनाना होगा ।
विकास दर में गिरावट, बेरोजगारी, रोजगार के नए अवसरों की नाउम्मीदी,औद्योगिक जगत मे निराशा, बैंक के समक्ष एन पी ए की समस्या आदि से दो-दो हाथ सरकार को करना होगा ।कोरोना ने इस संकट की आग में घी डालने का काम किया है ।पहले तो हमें विश्वव्यापी महामारी को समवेत प्रयास से हराना है ।आने वाले आर्थिक संकट पर भी नजर बनाए रखना है ।