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एंटी इनकंबेंसी के कारण देवघर में भाजपा की राह आसान नहीं

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N7India.Com (DESK)

देवघर।

देवघर विधानसभा सीट पर मुकाबला इस बार काफी टक्कर की होने वाली है. एक ओर जहां भाजपा के विधायक एंटी इनकंबेंसी फैक्टर से जूझ रहे हैं, उनकी जीत की राह में रोड़े अटकाने के लिए इस बार आजसू व लोजपा भी एनडीए से अलग होकर चुनाव मैदान में है. वहीं राजद की जीत पर ब्रेक लगाने के लिए झाविमो पूरे जोर-शोर से लगी है. 

राजद प्रत्याशी को महागठबंधन तो नारायण को मोदी का सहारा

भाजपा और राजद की जीत के समीकरण में झाविमो, आजसू, लोजपा, जदयू उलट-फेर कर सकता है. क्योंकि सबका अपना अपना वोट बैंक है. वो वोट बैंक प्रत्याशी के चेहरे पर हो या दल के आधार पर हो. ये पार्टियां भाजपा और राजद दोनों के वोट बैंक में सेंधमारी करने की कुबत रखती है. राजद के सुरेश पासवान को जहां महागठबंधन की ताकत पर भरोसा है. जबकि भाजपा के नारायण दास का मोदी ही सहारा है. क्योंकि उनके गठबंधन में दरार है. सभी अलग होकर चुनाव मैदान में भाजपा के लिए ही चुनौती बने हुए हैं. 

2014 में पहली बार देवघर से जीती थी भाजपा

देवघर के चुनावी इतिहास में पहली बार भाजपा से नारायण दास चुनाव जीते थे. इससे पहले यह सीट जदयू के खाते में जाती रही है. जदयू से कामेश्वर दास विधायक भी बने. लेकिन सुरेश पासवान की राजनीतिक जमीन काफी गहरी रही है. वे तीन बार विधानसभा चुनाव जीते हैं. 1995 में सुरेश पहली बार जनता दल से विधायक बने, उसके बाद 2000 व 2009 में जीते. वे 2005 और 2014 में हार गये.

कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं सुरेश पासवान

इस बार राजद के सुरेश पासवान को कांग्रेस और झामुमो का भी साथ मिला है. क्षेत्र में राजद का अच्छा जनाधार रहा है. इसलिए 2019 के चुनाव में भाजपा को कड़ी चुनौती सुरेश पासवान दे रहे हैं. क्षेत्र में वे सहज-सुलभ विधायक के रूप में जाने जाते हैं. वहीं मोदी लहर में 2014 में विधायक बने नारायण दास को इस बार भी मोदी पर ही आस है. क्योंकि वे इस बार एंटीइनकंबेंसी फैक्टर से जूझ रहे हैं. 

बहरहाल, सभी दलों ने चुनाव जीतने के लिए पूरा दम-खम लगा दिया है. लेकिन जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा, यह तो मतदाता जानते हैं. उनकी किस्मत का फैसला 16 दिसंबर को इवीएम में बंद हो जायेगा. 23 दिसंबर को साफ हो जायेगा कि जनता ने पुराने चेहरे को पसंद किया है या फिर कोई नया चेहरा इस बार विधानसभा की ओर रूख करेगा.


LG

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