संथाल परगना।
एक जुमला है दुश्मन से खतरनाक खफा दोस्त होते हैं। यही जुमला कहीं संथाल परगना में भाजपा पर न हावी हो जाय। सोमवार को दुमका में जरमुंडी विधानसभा के लिए कई नेता नामांकन को पहुंचे थे। वहां जो देखने को मिला वो अचंभित करने वाली बात थी।
बागियों के साथ दिखे भाजपा कार्यकर्ता
वहां जरमुंडी से भाजपा के देवेन्द्र कुंवर नामांकन करने पहुंचे थे। उनके साथ भाजपा के वरीय नेता अभयकांत प्रसाद थे। कोई पार्टी कार्यकर्ता उनके साथ नही दिखे। लेकिन जब भाजपा के बागी सीताराम पाठक निर्दलीय के रूप में नामांकन करने पहुंचे तो उनके साथ दर्जन भर भाजपा के कार्यकर्ता पहुंचे थे। इनमें से कुछ देवघर के भी कार्यकर्ता थे। जो परिदृश्य आज देखने को मिला इससे साफ जाहिर हुआ कि भाजपा को किसी और से नही अपनों से ही खतरा है। वैसे भी सीताराम पाठक भाजपा में लंबे समय से समर्पित होकर काम कर रहे थे। जिसे भाजपा ने नकार दिया और देवेन्द्र कुंवर को टिकट दे दिया। सिर्फ यही नही केंद्र में साथ जीने वाले लोजपा ने भी दमदार प्रत्याशी को मैदान में उतार दिया है , जो भाजपा के लिए अच्छा संकेत नही।
उधर एक और बागी भाजपा को छोड़ कर बसपा में गए हैं जो संजयानंद झा हैं। हालांकि इनके जत्थे में देवघर के लोग ज्यादा देखे गए। लेकिन ये भाजपा के लिए कम खतरनाक नही। भाजपा में रहकर इन्होंने भी खूब नाम कमाए हैं। ये हाल सिर्फ जरमुंडी ही नही।
मधुपुर में भी गंगा नारायण सिंह के नामांकन में पर्दे के पीछे से भाजपा कार्यकर्ता को ही देखा गया था। राजमहल में भी कई कार्यकर्ता मौजूदा प्रतिनिधि से खुश नही और अब आजसू के साथ कंधा से कंधा पर्दे के पीछे से मिला रहे हैं। हालांकि देवघर में लोजपा ने झामुमो से टूट कर आये हुए लोगों को ज्यादा शामिल किया है। इसलिए वहां भाजपा को घर के भीतर से परेशानी नही है।
बदल सकता है जरमुंडी का समीकरण
नामांकन के साथ एक बात देखने को मिली जरमुंडी का समीकरण बदल सकता है। बहुत कम वोट लाकर भी कोई चुनाव जीत सकता है। क्योंकि यहां से प्रत्याशियों की फौज खड़ी है। हर प्रत्याशी कुछ न कुछ वोट तो लाएगा ही। ऐसे में रेस में आगे चलने के लिए मैदान में उतरे खिलाड़ियों के लिए ये फ़ौज खतरनाक है.