देवघर।
काश! ऐसे आते नेताजी, जैसे चुनाव में वोट मांगने आतें हैं… चुनाव जीतने के बाद का नजारा ही कुछ और हो जाता है. यूं कहिये, नेताजी को कुर्सी मिली और पकड़ लिये…फिर क्या नेताजी चुनाव जीतकर चले गयें…
बुरा मत मानियेगा नेताजी…. आज हमें बोलने का वक्त मिला है… हम तो वोटर हैं… ये तो अपना अधिकार बनता है. जैसे वक्त हमारा हो, बाकी टाईम तो नेताजी का… पांच साल बीत चुके, कुर्सी से उठने का. फिर बैठने की पारी आयी है.
सुनिये… हम तो चुनेंगे, आपको… विकास के लिए, रोजगार, बेहतर शिक्षा और मूलभूत सुविधाओं की पूर्ति के लिए. सवाल बस इतना है नेताजी… चुनाव जीतने के बाद. क्या आपके दरबार पंचायत-पंचायत या हो सके तो गांव-गांव लगेंगे?
ये मत कहियेगा…. नेताजी मंत्री हो गये या फिर विधायक हो गये… कितने गांव-गांव जाउंगा? टाईम नहीं है का नारा मत लगाईयेगा. विकास कुर्सी पर बैठकर नहीं, हमारी जरूरत को महसूस करने पर होगा.
चुनाव के वक्त हाथ जोड़कर वोट मांगने का वक्त आपका है और देने का अधिकार हम वोटरों का है. हमारे अधिकार का हनन मत करियेगा. हम तो वोटर है… बड़ी उम्मीदें होती है जब हम आपको उन जरूरतों को ध्यान में रखकर वोट करते हैं. साल दर साल गुजरने के बाद भी जरूरत बस जरूरत ही रह जाती है. हम कतार में यूं खड़े रहते हैं जैसे नेताजी कहेंगे और हम दौड़ पड़ेंगे. विकास कहां -कहां से गुजरा है. भला हमसे बेहतर कौन समझेगा, हम तो वोटर है…. सिर्फ चुनाव जीतकर मत चले जाईयेगा…..