सारठ।
झामुमो ने पूरे संताल परगना में प्रत्याशी की घोषणा कर दी है, सारठ को छोड़कर। सारठ से कौन होगा इसबार झामुमो का चेहरा इसको लेकर अटकलों का बाजार गरम है। यहां से लंबे अरसे से शशांक शेखर भोक्ता को टिकट मिलता आ रहा है।
इसबार चर्चा है कि इलाके के परिमल सिंह उर्फ भूपेन सिंह भी इस टिकट के लिए खास प्रयासरत हैं। उन्होंने फोन पर भी बताया कि वे टिकट चाह रहे झामुमो से और प्रयासरत भी हैं। लेकिन पार्टी ने अभी फाइनल नही किया है। अब अगर इन्हें झामुमो टिकट देती है तो शशांक भोक्ता को थोड़ी खलेगी जरूर। इसका दर्द भी उन्होंने सोमवार को अपने फेसबुक वॉल पर बयां किया है। उन्होंने टिकट नही मिलने की स्थिति में खुद को आलोचकों के चुटकुला के माफिक बताया है। उन्होंने आज की राजनीति पर भी टिप्पणी की है , कहा है आज की राजनीति में प्रतिबद्धता शब्द पुरानी हो गई। आज की राजनीति में सत्ता हासिल करना ही शीर्ष नेता का मकसद रहा है। उन्होंने यह भी कहा है ऐसा नही की टिकट नही मिलने पर पार्टी छोड़ देंगे। जयप्रकाश नारायण की विचारधारा का उदाहरण देते हुए कहा है टिकट मिले या न मिले वे झामुमो में थे, हैं और रहेंगें भी। बता दें कि झामुमो की टिकट पर ही चुनाव जीतकर शशांक शेखर भोक्ता विधानसभा अध्यक्ष बने थे।
शशांक शेखर भोक्ता के फेसबुक वॉल से
सारठ विधानसभा क्षेत्र को होल्ड पर रखा गया है। यानी इस क्षेत्र के झामुमो टिकट के लिए विशेष विचार-विमर्श की आवश्यकता है। सटीक भाषा में मैं चुनाव समिति की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाया। बहुत से लोग सुनहरा मौका जानकर झामुमो के टिकट के लिए दौड़ लगा रहे हैं। स्वाभाविक है कि लोकतंत्र में सबको चुनने तथा चुने जाने का अधिकार है। जनता भी जानती है कि सारठ विधानसभा क्षेत्र की जरूरत क्या है। 29 साल से झामुमो संगठन की राजनीति की। जनता के लिए क्या किया, जनता बेहतर जानती है। सारठ को सामंतवादियो से मुक्ति मेरी पहली प्राथमिकता थी। 2000 में सारठ को आजादी मिली। खौफ का साम्राज्य खत्म हुआ। पर, पिंजरे से पंक्षी को आजाद तो करा दिया पर पिंजरे का खौफ उनके दिल से निकाल नहीं पाया। पंछियों के स्वयंभू जातीय ठेकेदारों को अपनी बेरोजगारी का भय था। ये जंतु फिर से पिंजरे की ओर निरीह पंक्षियो को ठेलने का प्रयास कर रहे हैं। टिकट होल्ड होते ही मैं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष से आलोचकों के लिए चुटकुला बन गया। विधानसभा क्षेत्र के अन्य उम्मीदवारों के लिए उम्मीद का किरण बन गया। समर्थन मांगने की होड़ लग गई। स्वाभाविक है। सारठ की राजनीति या कहें कि देश की राजनीति बिना पेंदी का लोटा बनकर रह गया है। राजनीतिक प्रतिबद्धता शब्द अब पुरानी हो चुकी है। येन केन प्रकारेण सत्ता हासिल करना ही शीर्ष सत्ता का मक़सद रह गया है। सरयू राय जैसे दिग्गज नेता का हश्र देख सकते हैं। महाराष्ट्र ताजा उदाहरण है। सारठ में हर पांच साल में लोग पार्टी बदलते हैं। आज की राजनीति यही है। राजनीति में रहना है तो यही करना होगा। मैं जरा पुराने ख्यालों का हूँ। राजनीति शास्त्र का विद्यार्थी रहा हूँ। पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर स्व. सतलाल सिंह सर की शिक्षा का अमिट छाप मेरे दिल पर है। जयप्रकाश नारायण मेरे आदर्श हैं। 1974 छात्र आंदोलन में जेल गया। झारखंड आन्दोलन में जेल गया। इसलिए इस उम्र में स्वयं को बदलना मुश्किल है। वैसे भी कहा जाता है कि इस उम्र में नेचर और सिग्नेचर नहीं बदलते। सार तत्व है कि मैं झारखंड मुक्ति मोर्चा में हूँ और रहूँगा। टिकट और चुनाव मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते। हां ये सत्य है कि "निरीह जनता" की सहायता नहीं कर पाने का मलाल जीवनपर्यन्त रहेगा। 29साल के सफर के बाद रूकने का गम तो रहेगा ही। मन विचलित होता है, निष्ठावान कार्यकर्ताओं के गमगीन चेहरों से, जिन्होंने सामाजिक प्रताडना सह कर भी पार्टी और मेरे लिए जी तोड़ मेहनत की। मैं उनके साथ जीवनपर्यन्त खड़ा रहूँगा। मेरी दुआ आपके साथ है। आखिरी सलाह कि कोई भी कार्यकर्ता पार्टी के विरुद्ध टिप्पणी नहीं करें।