मधुपुर/देवघर।
मधुमक्खियों के अब घरौंदे और भी बनेंगे , वर्षों से खड़ा हूं और कितने खड़े होंगें
आज सबसे ज्यादा खुशियों के ठहाके अगर कहीं से आ रही थी तो उन मधुमक्खियों के छत्तों से जो काफी उँचाईयों में थी.. मान लिजिये सौ-डेढ़ सौ फीट. शोर-शराबा और ठहाकों के बीच बेलापाड़ा का वो पानी टंकी खामोश खड़े बस यही सोच रहा था कि मेरे सामने मुझसे बड़ा एक और कौन खड़ा होने की तैयारी में है.
शायद कई पैरों वाला पानी टंकी. क्या इन्हें भी वर्षों खड़ा होकर दिन ही गुजारना होगा? या फिर यूं कहें मेरी तरह शोभनीय बनकर लोगों के कंठों तक पहुंचने का इंतजार करते रहना होगा. नहीं साहेब! प्यास तो हम भी बुझा सकतें थें…पर आपने मुझपर कभी ध्यान ही न दिया. मुझमें क्या कमी थी, ये बतलाओ? आपलोगों ने ही वर्षों पहले मुझे शायद यही तो सोचकर खड़ा किया था कि लोगों तक पीने का शुद्ध पानी पहुंचाना है. उन जगहों तक जहां पानी की हाहाकार मची हो. सरकारी खजानों से ही मुझे तैयार किया गया था, ठीक आज जैसा. आज मैं खामोश नहीं रहूंगा, कहता रहूंगा कि कई पैरों वाले पानी टंकी पर ध्यान जरूर देना, पैसे पेड़ पर नहीं फलते हैं साहेब…उन कंठों वालों की ही तो हैं जिन्हें तृप्त करना हमारा कर्तव्य है. खड़ा किजिये मैं रोक नहीं रहा, पर मेरी विनती जरूर सुनना पानी लोगों के कंठों तक पहुंचाना, वरना हमें फिर दुःख होगा. वहां फिर घरौंदें बनेंगे उन मधुमक्खियों की जिसने आज मेरी चुप्पी तोड़ी है. सुना है 64 करोड़ रूपये से इस बार मेरे शहर में कई पैरों वाला तीन पानी टंकी खड़े किये जा रहें हैं. साहेब…ये पीड़ा काफी पुरानी है. आज भी मुझे और आपके सिस्टम को लोग कोसते नहीं थकते. लाज़मी है कोसना… पथलचपट्टी, नया बाजार, अब्दुल अजीज रोड जैसे ड्राईजोन इलाकों में रहने वाले तो मत पूछिये …न जाने क्या-क्या कहतें आयें हैं. हमने खड़े और कुर्सियां तोड़कर ही तो दिन गुजारा है. अब कुर्सियों से जरा उठना होगा साहेब, कंठ आज भी सूखे हैं. प्यास तो मैं भी बुझा सकता हूं साहेब! न जाने आप कब सुधरेंगे।