गिरिडीह।
जब भी कोई जवान देश के लिए कुर्बानी देते हुए शहीद हो जाता है तो सरकार उसके परिवार को मदद करने के ना जाने कितने वादे करती है. लेकिन क्या शहीद परिवार के लिए वह मदद पाना वाकई इतना आसान होता है. झारखण्ड के गिरिडीह से ऐसा ही एक मामला सामने आया है. जिससे सरकारी अफसरों के शहीद के परिवार के प्रति रवैया का पता चलता है.
दरअसल कश्मीर की सरहद पर अपनी जान कुर्बान करने वाले शहीद सीताराम उपाध्याय की बेवा रश्मि उपाध्याय झारखण्ड सरकार से घोषित मुआवजा, नौकरी व अन्य सुविधाओं के लिए सरकारी कार्यालय का चक्कर काट रही है। बॉर्डर पर पिछले वर्ष 18 मई को देश की रक्षा में तैनात सीताराम उपाध्याय दुश्मन सैनिकों की गोली के शिकार हो गए थे। इनका शव जब गिरिडीह पहुँचा तो पूरा गिरिडीह उस वीर बाँकुरे के अंतिम दर्शन को उमड़ पड़ा। अंतिम संस्कार में कई जनप्रतिनिधी,पदाधिकारी व कई खासो आम पालगंज पहुँच कर शहीद के परिजनों को आश्वासन दिया। सरकार द्वारा घोषित आश्वासन की पुलिंदा लेकर शहीद की विधवा रश्मि देवी अब तक कई बार गिरिडीह उपायुक्त कार्यलय में पहुंचकर गुहार लगा रही है।
इस मामले में गिरिडीह उपायुक्त का कहना है कि सरकारी प्रावधान के मुताबिक कार्य हो रहा है. जल्द ही सैनिक की विधवा को उचित सरकारी सहायता मिल जायेगा। इस बार होने वाले स्थापना समिति की बैठक में मामले का निष्पादन कर लिया जायेगा।
बहरहाल,यह कोई नई कहानी नही है। देश की रक्षा में कुर्बान होने वाले सैनिकों के लिए पूरा देश श्रद्धा और सम्मान का भाव रखता है। लेकिन सिस्टम की पेचिदिगीयों में आर्थिक सहायता का मामला फसता लटकता रहता है। जरूरत है वीरों के शहादत के सम्मान में सिस्टम में थोड़ा लचीलापन लाने की।