Reported by: बिपिन कुमार
धनबाद।
52 साल की उम्र में देशी फॉर्मूले से महज एक महीने में चंद्रेश्वर पासवान ने बना दिया 50 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ने वाली एक्सलेटर साइकिल। यही नहीं चंद्रेश्वर की यह मोटरसाइकिल बिना पेट्रोल, डीजल के चलती है। जिस कारण यह पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाती।
देशी फॉर्मूले से बनी मोटरसाइकिल:
उम्र भी अब अपने अंतिम लक्ष्य की ओर बढ़ रहा, तकनीक की भी कोई ज्यादा जानकारी नहीं थी, ऐसे में देशी फॉर्मूले से मोटरसाइकिल बनाने का सपना एक दुरूह रास्ते से कम नहीं था। लेकिन कहते है न "इंसान के अंदर कुछ कर गुजरने की दृढ इक्षा हो तो पत्थरो पर भी फूल खिला करते है।" कुछ ऐसे ही जूनून से लबरेज 52 वर्षीय चंद्रेश्वर पासवान ने वो कर दिखाया जिसकी आज हर तरफ चर्चा हो रही है।
बीसीसीएल डयूटी में बायोमेट्रिक सिस्टम के कारण आया सोच: चंद्रेश्वर पासवान
देशी फॉर्मूले से बनी बाइक की चर्चा जब n7 india तक पहुंची तो हमारे संवाददाता भी निकल पड़े चंद्रेश्वर पासवान से मिलने। पता चला की चंद्रेश्वर इस वक्त धनबाद के पुटकी बलिहारी परियोजना के अंडरग्राउंड माइंस में डियूटी पर होंगे। जब वहाँ पहुंचे तो चंद्रेश्वर को सूचना के अनुसार डियूटी में ही बैठा पाया। चंद्रेश्वर को जब संवाददाता ने देखा तो उन्हें देख जरा भी अंदाजा नहीं लगा पा रहे थे कि उनके भीतर तकनीक की इतनी ज्ञान भरी है। लेकिन उनकी सोच, बातो और उनकी देशी फॉर्मूले की बाइक ने हमारे सभी संदेहों को क्षण भर में मिटा दिया।
चंद्रेश्वर बताते है कि दूर-दराज के इलाको से रोजाना मजदुर खदानों में काम करने आते है, समय पर डियूटी पर उपस्थित होना भी अनिवार्य है, क्योंकि माइंस में बायोमेट्रिक सिस्टम होने से थोड़ी भी देर की गलती की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है। ऐसे में समय पर डयूटी और फिर वापस अपने घर पहुचना किसी चुनौती से कम नहीं था। दोस्तों ने तो स्थिति को देखते हुए नई बाइक खरीद ली, लेकिन मेरी अपनी साइकिल जिसने इतने साल मेरा साथ दिया उसे छोड़ने का भी मन नहीं कर रहा था। ऐसे में मैने कुछ अलग करने की सोची।
रोजाना वह 16 किलोमीटर दूर से साइकिल चलाकर डयूटी आते है, बीसीसीएल के अंडरग्राउंड माइंस में ट्रामर के पोस्ट पर कार्यरत चंद्रेश्वर पासवान जिनका काम ट्रॉली की साफ-सफाई करना है। उन्होंने बताया कि रोजाना वह 16 किलोमीटर दूर से साइकिल चलाकर डियूटी आते है, जिससे अब काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार उन्होंने नई बाइक खरीदने की सोची लेकिन उनका अपने साइकिल से लगाव, बढ़ते पेट्रोल-डीजल की कीमत और उससे निकलने वाले धुंवे से पर्यवारण को होने वाले नुक्सान को सोच उन्होंने अपना मन बदल दिया।
चंद्रेश्वर ने बताया कि इसी बीच एक दिन उनके मन में आया कि जब कन्वेयर बेल्ट मशीन के द्वारा सैकड़ो टन वजनी कोयला लदी ट्रॉली को आसानी से उठा सकता है, तो उनकी साइकिल में यदि मोटर, बैटरी, पिनियन, लाइट आदि लगा दी जाए तो के क्या वह उनका भार नहीं खिंच सकती। इसी सोच के साथ वह अपने साइकिल को एक मोटरसाइकिल का रूप देने में लग गए। लगभग 1 महीने के अथक प्रयास के बाद अंततः उन्होंने बिना पेट्रोल-डीजल के 50 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार दौड़ने वाली देशी फॉर्मूला से बनी मोटरसाइकिल का निर्माण कर सभी को चौक दिया।