Reported by: फलक शमीम
हज़ारीबाग।
'का बरसा जब कृषि सुखाने' वाली प्रसिद्ध कहावत किन परिस्थितियों में बनी होगी। अगर यह जानना और देखना है तो आइए झारखण्ड के हजारीबाग। क्योंकि यहां इस बार के धान के फसल ने जो परिस्थितियां किसानों के सामने लाकर रखी हैं वह इस कहावत पर बिल्कुल सटीक बैठती है ।
हजारीबाग में किसानों के माथे पर बल आपको दिखाई देंगे। क्योंकि किसानों ने जितने महंगे बीज अपने भविष्य को बेहतर बनाने के उद्देश्य से लगाए थे. वह सपने आज चूर-चूर होते नजर आ रहे हैं। क्योंकि बारिश ने जो धोखा इन्हें दिया है ,उसकी भरपाई अब होनी मुश्किल है।
आज स्थिति यह है कि किसान सूख चुके धान के फसलों को काट कर अपने मवेशियों को खिला रहे हैं. ताकि मन में कुछ संतोष हो सके. लेकिन आलम यह है कि कर्ज़ लेकर की गई किसानी आज उन्हें ठेंगा दिखा रही है. ऐसे में सरकार से गुहार लगाना तो उनका बनता है परंतु उन्हें सरकार पर भी भरोसा नहीं दिखता। तभी तो गुहार भी लगाने में वह कसमसा रहे हैं.