गोड्डा।
सूबे के मुखिया रघुवर दास प्रत्येक मंच से ये हिदायत देते नजर आते हैं कि कोई भी बिचौलिए को हावी होने मत दो। बिचौलिया प्रथा को ख़त्म कर देना है. मगर गोड्डा जिले में जो हुआ उसे देख नही लगता कि ये बीमार बन चुकी प्रथा जल्दी समाप्त होने वाली है.
वीडिओ में गोड्डा व्यवहार न्यायलय के बाहर ये वो गरीब आदिवासी और दलित किसान हैं जो मेहरमा प्रखंड से आये हैं. इनके चेहरे की रंगत ये बयान कर रही है कि वे कितने घबराए हुए हैं. दरअसल मेहरमा प्रखंड के ये आदिवासी किसान बिचौलिए के मारे हुए हैं. आज से पांच वर्ष पूर्व जब इलाके में सुखाड़ की घोषणा हुई थी उस वक्त उस इलाके के दो बिचौलिए बमबम और दिगंबर पाण्डेय नामक शख्स ने लगभग 45 लोगों के घरों पर ये कहकर अंगूठे का निशान लगवा लिया कि सुखा होने के कारण तुम्हे सरकार से मुआवजा मिलेगा. मगर इन बेचारों को क्या मालूम कि वो जालसाजी से शिकार हो जायेंगे. अंगूठे का निशान लगवाने के दस दिनों बाद सभी को दस से पंद्रह हजार रुपये करके नगद भुगतान भी किया गया. फिर ये सभी उस पैसे को भूल से गए.मगर आज पांच वर्षों बाद स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के मडप्पा शाखा द्वारा लोक अदालत से नोटिस मिला तो इनके पैरों तले जमीन ही खिसक गयी .
इधर भोले-भाले आदिवासी और पिछड़े वर्ग के किसानो को जब नोटिस मिला। तो सभी भागे-भागे न्यायलय परिसर स्थित लोक अदालत के कार्यालय पहुंचे .सभी के हाथों में सत्तर से लेकर पचासी हजार के बकाये भुगतान का नोटिस था .कहते है कि जब हम कभी बैंक गए ही नहीं ,खाता हमारा है ही नहीं तो हमने बैंक से कर्ज कब लिया .
इधर गोड्डा कोर्ट में सरकारी वकील ने भी माना कि ये सरासर बैंक और बिचौलिए के सांठ-गाँठ से हुए फर्जीवाड़ा का मामला नजर आ रहा है .गरीब और आदिवासी पिछड़े वर्गों के लोगों के साथ जो अनपढ़ हैं उन्हें बरगलाकर अंगूठे का निशान लगवा लिया गया और सभी के नाम से लोन स्वीकृत कर कुछ रकम की भुगतान कर सारे पैसे का बंदरबांट कर लिया गया .इस मामले की जिला प्रशासन को पूरी तरह से जांच करनी चाहिए और दोषियों को दण्डित करना चाहिए .
बहरहाल ऐसे गंभीर मामले अगर बैंक के द्वारा किया जायेगा तो फिर बैंक की शाख पर तो बट्टा लगेगा ही, सरकारी तंत्र पर भी सवालिया निशान लगने लाजमी हैं .जरुरत है सख्ती मामले की जांच करने की और दोषियों पर कार्यवाई की ताकि ऐसे मामलों की पुर्नावृति न हो .