गिरिडीह:
आम तौर पर पुलिस जब नक्सली इलाकों में जाती है तो क्षेत्र में सन्नाटा पसर जाता है। माहौल में ख़ौफ़ और डर समाया होता है। लेकिन इस बार गिरिडीह के सघन नक्सल प्रभावित पाण्डेयडीह और नावाडीह में पुलिस जब पहुँची तो पुलिस टीम का गर्मजोशी से स्वागत किया गया। पुलिस और ग्रामीण एक दूसरे के सुख-दुख बांटते हुये नजर आए।
दोस्ती का पैगाम लेकर पहुंची पुलिस:
गोले-बारूद की महक से सनी पाण्डेयडीह और नावाडीह की धरती पर उम्मीद की किरण फूट रही है।हमेशा संगीनों के साए में आमने-सामने रहने वाले पुलिस पब्लिक में दोस्ताना रिश्ता कायम हो रहा है। दरअसल सिविल एक्शन प्लान के तहत गिरिडीह एसपी सुरेन्द्र झा के नेतृत्व में जिला बल की टीम ने अति नक्सल प्रभावित पाण्डेयडीह और नावाडीह गांव में दोस्ती का पैगाम लेकर पहुँची। पुलिस टीम सबसे पहले दुर्दांत नक्सली टेकलाल महतो, उदय महतो और निर्मल महतो के गांव पांडेयडीह पहुँची। यहां पुलिस ने ग्रामीणों से बात चीत कर उनके बीच अनाज, कपड़े, मछड़दानी, स्कूल बैग आदि का वितरण किया।
एसपी ने किया वादा:
इस दौरान खास बात यह रही कि एसपी ने यहां मानसिक रूप से अस्वस्थ नक्सली निर्मल महतों की बहन के इलाज कराने का बीड़ा उठाया। वहीं एक निर्धन युवती के विवाह का खर्च उठाने की घोषणा की। इसके अलावे एक तेज तर्रार बच्चे से प्रभावित होकर उन्होंने बच्चे को गोद ले लिया। बताया गया कि बच्चा अपने माँ बाप के पास ही रहेगा, लेकिन उसकी पढ़ाई का सारा खर्च एसपी उठाएंगे।
भटके हुए लोगों को राह दिखाने की कोशिश:
इधर कमोबेस यही नजारा मोस्ट वांटेड और 25 लाख का इनामी नक्सली अजय महतो के गांव नावाडीह का भी था। यहां भी पुलिस टीम बेहद खुशनुमे माहौल में ग्रामीणों से मिल कर उनके बीच जरूरी सामानों का वितरण कर रही थी। मौके पर एसपी ने कहा कि भटके हुये लोगों को राह दिखाने और एक ह्यूमन टच देने के उद्देश्य से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है। इस गांव का विकास कैसे हो और पेयजल आदि की व्यवस्था कैसे की जाय पुलिस इस दिशा में भी प्रयास कर रही है।
खत्म हो रहा ग्रामीणों के मन से पुलिस का ख़ौफ़:
पुलिस आपके द्वार कार्यक्रम का दृश्य बेहद सुकुन दायक था। दरअसल सुदूरवर्ती बीहड़ो में बसे ग्रामीणों के मन से पुलिस का ख़ौफ़ समाप्त हो रहा है। इनमें बदलाव के उम्मीद की किरण फूट रही है। मौके पर एस पी ने कहा कि हमेशा से किसी के भी गलत रास्ते पर जाने के पीछे सामाजिक,आर्थिक पृष्ठभूमि अहम कारण होती है। पीरटांड़ के गांवों की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। यहाँ के लोग गलत लोगों के संपर्क में आकर दहशत के रास्ते पर चल पड़े हैं। उन्हें वापस मुख्यधारा से जोड़ना ही इस कार्यक्रम का उद्देश्य है।
बहरहाल, अहिंसा की तपोभूमि पारसनाथ पर्वत की तलहटी पर बसे इन गांवों की इबारत पिछले दो दशक से सिर्फ खून से ही लिखी जा रही है। अहिंसा की पाठ पढ़ने वाले यह भूमि किसी रक्त बीज से कम नहीं है लेकिन इस बार उम्मीद की फसल बोई गई है। देखना होगा यह फसल कितना लहलहाती है।