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रागिनी नहीं जाएगी अपने ननिहाल, वजह जान तारीफ करते नहीं थकेंगे आप

रिपोर्ट: करुणा करण 

पलामू: 

पलामू की मिट्टी में समाजिकता, व्यवहारिकता एवं नैतिकता ऐसे समाहित है, जैसे मासूमियत में दैवीय रूप…  इन बातों का प्रमाण बनी है पंद्रह साल की रागिनी कुमारी। भले ही छत्तीसगढ़ के बैकुंठपुर स्थित स्कूल में अशोक कुमार दुबे की छोटी रागिनी शिक्षा-दीक्षा ग्रहण कर रही है… पर रग-रग में पलामू का खून दौड़ रहा है तो दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली नाबालिग अपने समाज के लिए प्रेरणा बन चुकी है।

प्रेरणा भी ऐसे ही नहीं… बचपन की चंचलता, मनोरमता, मस्ती सब छोड़-छाड़ कर, जिंदगी के हसीन यादगार लम्हों को खो कर रागिनी बस एक ही राग अलाप रही है… मुझे ननिहाल नहीं जाना है…। बच्चों की तरह वो जिद्द तो कर रही है… पर व्याकुल मन को मार कर मामा घर नहीं जाने को… वजह भी कुछ ऐसी है… जिसे जान आप भी नाबालिग रागिनी को जागरूकता की प्रेरणा मान बैंठेंगे। रागिनी के मामा के घर शौचालय नहीं है… यही वजह है कि पंद्रह साल की किशोरी पांच साल से अपने ननिहाल गढ़वा स्थित बनपुरवा जाने को तैयार नहीं है।

चाहे दादी हो या मां हर किसी को बेटी पर नाज है. उनके लिए तो उसकी सोच, सुरक्षा एवं समरसता के हिसाब से लाजवाब है, हां एक कचोट है कि बच्चे ननिहाल नहीं जा रहे हैं पर करें भी तो क्या करें।

रागिनी शब्द तुला राशि की पहचान है. और नाम जस गुण भी रागिनी में विद्यमान है… मगर कोई समझे तब ना… परिवार के लिए अपने बचपन की यादों को, किशोरावस्था के चंचलता की आहूति देकर ममहर के लिए आकाशीय अप्सरा ने 21 वीं सदी के स्वच्छ भारत के निर्माण में पंद्रह साल की उम्र में ही अहम योगदान दे दिया। बस जिद्द की भी तो बच्चों वाली नहीं, बच्ची होकर भी पढ़े-लिखे काबिल बड़ो वाली।

जिस संगीत की राग रागिनी में शीतलता का संचार है उसके दिल में अपनों के लिए बेहतर जीवन जीने की परिकल्पना का ललासा भी है… जिसके प्रशंसक अनेकों है… जिसके लिए हर बेटी नाज, हर बेटी प्रेरणास्त्रोत है… तभी तो अपने घर की बेटी की सोच को देश का सोच मान पंचायत के मुखिया समेत पूरा झारखंड रागिनी की ओर आशा भरी निगाहों से निहार रहा है।

पलामू की बेटी है जो पड़ोसी जिले गढ़वा के लिए प्रेरणा बन चुकी है… उम्मीद है जल्द ही शौचालय बनकर पूरा होगा और एक दो चार दिन नहीं पांच साल का उधार चुकता करने रागिनी बनपुरवा जल्द जायेगी…

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