गिरिडीह:
वैशाख का महीना, तप्ती धूप, सुख रहे नदी और कुएं की बदहाल स्थिति। जी हाँ पेयजल के लिए बूंद-बूंद को तरस रहे हैं सरिया के लोग। बावजूद पीएचईडी विभाग चैन की नींद सोया हुआ है। यह स्थिति बनी हुई है गिरिडीह जिला के प्रसिद्ध व्यवसाई मंडी सरिया बाजार की।
वर्ष 2008 में सूबे के तत्कालीन पेयजल आपूर्ति मंत्री अपर्णा सेनगुप्ता ने करोड़ों रुपए की लागत से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सरिया के प्रांगण में ग्रामीण पेयजल आपूर्ति के तहत जलमीनार की आधारशिला रखी थी। जिसके संवेदक शिल्पी कंस्ट्रक्शन के उपेंद्र शर्मा थे। बताया जाता है कि उक्त योजना को 2 वर्षों के अंदर पूरा कर बराकर नदी से पाईप लाइन द्वारा सरिया के कई टोला मोहल्ला में पेयजल आपूर्ति कराना था। परन्तु एक दशक बीत जाने के बाद भी स्थानीय लोग पेयजल के लिए तरस रहे हैं। इस संबंध में ग्रामीण उपभोक्ताओं द्वारा कई बार संबंधित विभाग के अधिकारियों से शिकायत की गई परंतु अब तक किसी अधिकारी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इस संबंध में ग्रामीण महिला किरण वर्मा ने कहा कि जलमीनार बने लगभग एक दशक बीत गए लेकिन दो बूंद पेयजल प्राप्त नहीं हो पाया। उन्हें कपड़े धोने के लिए 1 किलोमीटर दूर स्थिति छोटे से तालाब का सहारा लेना पड़ता है। वहीं पेयजल के लिए भी घर से दूर कुएं पर नंबर लगाना पड़ता है।
बताते चलें कि सरिया में पेयजल आपूर्ति के लिए दो जलमीनार बना था जिसमें से एक जलमीनार से आपूर्ति शुरू की गई। वहीं दूसरा जलमीनार 10 बरस बीत जाने के बाद भी बंद पड़ा हुआ है। इस जलमीनार के क्षेत्र में बलीडीह, पोखरियाडीह,बड़की सरिया, सरिया बाजार पेठियाटांड़,स्टेशन रोड आदि मोहल्लों में पेयजल आपूर्ति करना था। परंतु कई बार ट्रायल होने के बाद जगह-जगह लीकेज होने के कारण पेयजल आपूर्ति शुरू नहीं की जा सकी।
एक अन्य महिला जनक दुलारी वर्मा ने कहा कि जल मीनार बनने की बातें एक दशक पूर्व सुनी थी। तब ग्रामीणों में आस जगी थी कि अब उन्हें पेयजल की सुविधा मिलेगी परंतु आज तक एक बूंद भी ग्रामीणों को पेयजल नसीब नहीं हुआ।
इस संबंध में जब विभाग के सहायक अभियंता से पूछने पर उन्होंने कहा कि पाइप जो बिछाया गया है वह मिस लिंकिंग है। जब भी पानी खोला जाता है जगह जगह लिक करता है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा पूर्व के अभियंताओं के लापरवाही का नतीजा है जो इस योजना को 10 वर्ष हो गए परंतु अब तक पूर्ण नहीं हो सका है।
बहरहाल,इस मुद्दे पर अनायास ही दुष्यन्त की पंक्तिया याद आ गई. कहां तो तय था चरागां हरेक घर के लिए, कहां मयस्सर नहीं शहर के लिए। यहां दरख्तों के साये में धूप लगती है चलो यहां से चलें और उम्रभर के लिए।
लोग आशंकित हैं कि जल्दी पेयजल संकट दूर नही हुआ तो निश्चित ही यहां लोगों का जीना मुहाल हो जाएगा।