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Women’s Day special: ’ अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी. ’

 लेखिका: डॉ. उषा सिंह 

 उषा    


 नारी विधाता की कलापूर्ण सृष्टि का श्रृंगार है. वह ममता की मंजूषा, स्नेह पयस्विनी , क्षमा की सुमेरू और पृथ्वी की कविता कही जा सकती है. अर्थात् नारी सृष्टि की प्रथम सौंदर्यमयी सर्वश्रेष्ठ कृति है, सृजन की आदि में विश्व उसकी गोद में क्रीड़ा करता आया है, उसकी मधुमति मुस्कान में महानिर्माण के स्वप्न हैं और भ्रू-भंग में विनाश की प्रलयंकारी घटायें. यह भोग की वस्तु नहीं प्रेरणा की पावस उत्स है. नदी की इसी निष्कलुष रूप की झांकी इन पंक्तियों में दृष्टिगत होती हैः-

                                                       ’नारी तुम केवल श्रद्धा हो

                                                      विश्वास रजत नग पग तल में 

                                                         पीयूष स्त्रोत सी बहा करो 

                                                        जीवन के सुंदर समतल में.’

नारी जीवन अपने सम्मान के लिये किसी दिवस की मोहताज नहीं और न ही इनके सम्मान के लिये सिर्फ साल का एक दिन काफी है. यह तो हर दिन, हर पल, हर क्षण सम्मान की अधिकारिणी है. जो त्याग समर्पण और सेवा भाव इस जगत् जननी में है, वह कहीं और नहीं हो सकता. कभी दुर्गा के रूप में, तो कभी काली, तो कभी सीता के रूप में अवतरित होकर, कभी ममता का संचार तो कभी असुरों का संहार करती आयी है. इस शक्ति के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा है, उसकी प्रगति अधूरी है. 

नारी प्रेम के लिये बड़ा-से-बड़ा त्याग करने के लिये उद्यत रहती है. उसका प्रेम विषय-वासनाओं की संकीर्ण परिधि तक ही सीमित न रहकर मानव कल्याण की उच्च भावना का भी संस्पर्श करता है. 

आज की नारी जागरूक है, हर क्षेत्र में- राजनीति, कानून, शिक्षा जगत या यूं कहें कि पृथ्वी से चंद्रमा तक हर जगह अपना परचम लहराये हुई है. हमारी भारत सरकार ने भी इनकी सुविधा को मद्देनज़र रखते हुए अनेकों स्कीम निकाला, किंतु अफसोस आज इस आधुनिकता के युग में बहुत स्त्रियां तो अपने अधिकार से भी अवगत नहीं. सुबह से शाम और शाम से रात तक घर, परिवार, पति और बच्चे की सेवा को ही अपना धर्म, कर्तव्य और अधिकार समझती हैं. अनेकों प्रताड़नाओं को झेलती, चाहे वह मानसिक हो या शारिरिक, अपनी नियती समझ स्वीकार लेती है.

तो फिर इस विशेष वर्ग के लिये स्वतंत्रता कब और कहां है?

ये नारी तो अपनी शक्ति के लिये नहीं सहनशक्ति के लिये प्रताड़ित की जाती है. नारी जीवन का समग्र रूप इन पंक्तियों में परिक्लित होता है- 

                                    ’ अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी

                                       आंचल में है दूध और आंखों में पानी. ’

किसी नारी की अवस्था को वही स्त्री समझ सकती है, जो संवेदनाशील से भरी नारी की जीवन की अनुभूति से अवगत होगी. किंतु दुखः तो यह है कि नारियों के शोषण और प्रताड़ना में नारियों का भी बहुत बड़ा हाथ होता है, तो क्या इस जगत जननी, ममत्वप्रेम से भरी दात्री के दुखों का अंत नहीं होगा?

चूंकि यह व्यक्ति विशेष का प्रश्न नहीं बल्कि जाति विशेष का प्रश्न है, इसलिये अगर सिर्फ स्त्रियां भी एक-दूसरे के दुखः-दर्द को आत्मीयतापूर्ण अपनाकर उसका समाधान कर सहयोग करे तो बहुत हद तक यह स्वतंत्र, हर निर्णय लेने में समक्ष और अपनी दयनीयता के चंगुल से निकल अपने पर गौरवांवित हो अपने जीवन को मरूस्थल होने से बचा पायेंगी. 

नारी हर रूप में सबला है, अगर कुछ अबला है तो उसकी अबल मानसिकता. अगर वह अपने इस अबल मानसिकता से उबर सके तो काई कारण नहीं कि वह पुरूषों से भी अधिक सबल हो सके. 


लेखिका: डाॅ. उषा सिंह हिंदी साहित्य में पीएचडी हैं, एवं स्वतंत्र लेखन करती हैं..

 

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