दुमकाः (गौतम मंडल)
आजादी के बाद राज्य बदला, सरकारें बदलीं लेकिन आदिम जनजाति पहाड़िया की हालत नहीं बदली. दुमका जिले में पहाड़िया समुदाय आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. इसकी बानगी मसलिया प्रखंड के हारोरायडीह पंचायत अंतर्गत झुंझको गांव में दिखती है. जहां मौलिक समस्याओं की भरमार है.
डोभा का पानी पीने को विवशः-
हारोरायडीह पंचायत अंतर्गत झुंझको गांव के ग्रामीण आज भी डोभा का पानी पीने को मजबूर हैं. पहाड़िया टोले में एक भी चापाकल नहीं है. मजबूरन टोले के लोग डोभा का गंदा पानी पीने को विवश हैं. झुंझको निवासी मालती पुजहरनी और किरनी पुजहरनी कहती हैं कि हर रोज़ घरों से दूर डोभा से उन्हें पानी भरना होता है. एक भी चापानल इस गांव में नहीं है. किसी भी जनप्रतिनिधी की नज़रें आजतक इस गांव की ओर इनायत नहीं हुई है, शायद यही वजह है कि मुलभूत सुविधाओं के अभाव में लोग जी रहे हैं. खास बात यह है कि सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व वर्तमान कल्याण मंत्री लुईस मरांडी के विधानसभा इलाके का झुंझको पहाड़िया टोला के साथ-साथ भालका पहाड़िया टोले में भी पहाड़िया समुदाय डोभा का पानी पीकर ही अपनी जिंदगी गुज़र-बसर कर रहे हैं. जो विकास की पोल खोलने के लिए काफी है.
आने जाने के लिए रास्ता नहीः-
गोलपुर-पलासी मुख्य सड़क से टोले की दूरी लगभग एक किलोमीटर है. मुख्य सड़क से टोले तक आने-जाने के लिए रास्ता ही नहीं है. ऐसे में लोग मैदान होकर आते-जाते हैं. जिससे बरसात में मैदान पर चलना भी दुश्वार है.
अवैध कारोबारियो ने बनाया रास्ताः-
टोला तक पहुंचने के लिए सरकार ने आजतक पहुंच पथ तो नहीं बनाया, लेकिन पत्थर माफियाओं ने मैदान होते हुए टोला के रास्ते आमगाछी पहाड़ तक ट्रैक्टर चलने लायक रास्ता बना लिया है. गोलबंधा गांव के माफिया इसी मैदान होकर आमगाछी पहाड़ से अवैध बोल्डर ट्रैक्टर के माध्यम से उतारते है, लिहाजा टोले होकर आदमी तो नहीं लेकिन ट्रैक्टर की आवाजाही होती रहती है. इस ओर न तो वन विभाग का ध्यान है न ही पुलिस प्रशासन का और न ही अंचल प्रशासन का. जिससे अवैध कार्य के लिए यह मार्ग सुरक्षित बन चुका है.
आवास का लाभ सिर्फ चार कोः-
टोले में नौ पहाड़िया घर है. जिसमें सिर्फ चार घरों को ही बिरसा मुंडा आवास का लाभ मिल पाया है. बाकी घर मिट्टी के है. नौ साल पहले बने इन आवासों की हालत भी ठीक-ठाक नहीं है. ग्रामीण सुखिया पुजहरनी ने बताया कि हमारे टोले में आए दिन मसलिया से लोग आते हैं और घर के लिए लिख के ले जाते हैं लेकिन आवास का लाभ नहीं मिलता है.
एक भी मैट्रिक पास नहीः-
दुखःद बात यह है कि टोले में एक भी युवक मैट्रिक पास नहीं है. सिर्फ एक युवक नौवीं कक्षा में पढ़ रहा है.
विपत्ति में छोड़ी पढाईः-
युवक चानू पुजहर पढ़ना तो चाहता है, लेकिन पारिवारिक परिस्थितियों के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ी. वह पांचवी तक गांव के ही विद्यालय में पढ़ा है. चानू के पिता नहीं हैं. घर में मां व एक भगिनी है. बड़ा भाई था लेकिन वह पंद्रह साल पहले काम की तलाश में हिमालय प्रदेश गया और वापस नहीं लौटा. चानू को कम उम्र में ही परिवार का पालनहार बनना पड़ा. चानू की मां कहती हैं कि सरकार द्वारा आज तक किसी तरह का लाभ नहीं मिला.
रोजगार का घोर अभावः-
ग्रामिण शुकुर पुजहर ने बताया कि रोजगार का घोर अभाव है. ग्रामीण रोजगार के लिए दुमका शहर जाते हैं और दिनभर मजदूरी करते हैं. वहीं से गुजारा चलता है. कुछेक लकड़ी बेचकर भी भरण-पोषण करते हैं.
नहीं बना डोभाः-
काफी मशक्कत के बाद टोले में मनरेगा योजना से एक डोभा बनाने का प्रस्ताव ग्रामिणो ने दिया. लेकिन डोभा बना नहीं. राजू पुजहर ने बताया कि आश्वासन के बाद भी डोभा नहीं बना.
चबूतरा भी अधुराः-
यहां एक चबूतरा भी बनना था. जो शुरू तो हुआ लेकिन अब तक अधूरा पड़ा है. ग्रामिणों ने बताया कि यह पिछले दो सालों से अधुरा पड़ा है. जिस वजह से सामुहिक बैठक में काफी परेशानी होती है. ग्रामिणो के उत्थान के लिए किसी का ध्यान नहीं है.