केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत आम बजट 2020-21 किसी भी मायने में आम भारतीयों की आकांक्षाओं की पूर्ति करने वाला बजट नहीं है। न तो सभी के लिए विकास करने वाला बजट है और ना ही सबों को सुरक्षा देने वाला ही बजट है। यह बजट कॉरपोरेट जगत को प्रोत्साहन देने वाला बजट है। 150 ट्रेनों के परिचालन का जिम्मा निजी क्षेत्र को देना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि अर्थव्यवस्था तेजी से निजीकरण की ओर बढ़ रहीं है।
बजट अमीर और गरीब के बीच अधिक असामनता बढ़ाने वाला ही है। कृषि उड़ान योजना को नागरिक उड्डयन मंत्रालय से जोड़ने की योजना से संथाल परगना जैसे पिछड़े क्षेत्रों के कृषकों को कोई लाभ नहीं होगा बल्कि निर्यातक कृषकों को लाभ होगा। छोटे दुकानदारों को पेंशन देना तो आकर्षक लगता है लेकिन इससे बाजार में मांग बृद्धि नहीं होगी तो अर्थव्यवस्था सुस्ती से बाहर कैसे आएगी। इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए राशि बढ़ाई गई है, लेकिन बजट में रोज़गार सृजन और रोजगार देने की स्पष्ट व्यख्या का अभाव है।
रोज़गार नहीं तो फिर क्रयशक्ति में बृद्धि नहीं, फिर सकल घरेलू उत्पाद दर में गिरावट। ऐसी स्थिति में 2024 तक अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाना असंभव। विकास दर को लेकर बजट भाषण भ्रामक। 2014-19 तक विकास दर को 7.4 प्रतिशत बताना, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा तीसरी तिमाही मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद बताए गए विकास दर से मेल नहीं खाता है। आयकर में वेतनभोगी मध्यमवर्गीय कर्मचारियों, पेंशनभोगियों को छूट न देकर ऐसे वर्ग के बचत एवं विनियोग की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। टीबी हारेगा,भारत जीतेगा, बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ, जल जीवन योजना, महिला स्वयं सहायता समूह को सशक्त बनाना, अच्छी योजनाए है, लेकिन क्रियान्वयन एवं लक्ष्य समूह तक योजनाओं को समय सीमा के भीतर तक पहचान संदेहास्पद है। बजट, भारत को गतिशील अर्थव्यवस्था एवं वाइब्रेंट इकॉनमी का रूप देने में सफ़ल होगा, यह भी संदेहों के घेरे में है।